History Archives - Hindibichar https://hindibichar.in/category/history/ Gyan ka bhandar Sun, 27 Mar 2022 15:50:28 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.3 https://hindibichar.in/wp-content/uploads/2020/06/cropped-Hindi-bichar-1-32x32.png History Archives - Hindibichar https://hindibichar.in/category/history/ 32 32 सविनय अवज्ञा आंदोलन – Civil disobedience movement in Hindi https://hindibichar.in/savinay-avagya-aandolan-hindi/ https://hindibichar.in/savinay-avagya-aandolan-hindi/#respond Wed, 31 Mar 2021 12:04:25 +0000 http://hindibichar.in/?p=772 स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे चरण में, गांधी ने “सविनय अवज्ञा आंदोलन” शुरू किया. 12 मार्च 1930 को सत्याग्रहियों ...

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स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे चरण में, गांधी ने “सविनय अवज्ञा आंदोलन” शुरू किया. 12 मार्च 1930 को सत्याग्रहियों के साथ दांडी यात्रा शुरू की. वहां उन्होंने समुद्र के पानी को छूकर नमक के लिए भारतीयों के अधिकार का दावा किया. 1930 में लंदन में ‘प्रथम गोलमेज सम्मेलन’ आयोजित हुआ था. लेकिन यह सम्मलेन का परिणाम भारत के लिए नकारात्मक था. इस बीच, गांधीजी और वायसराय इरविन के बीच गांधी-इरविन समझौता हुआ. समझौते के बाद, गांधीजी ने लंदन में 1931 की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया. यह आंदोलन के बारे में और विस्तार रूप से जानने के लिए आपको मुख्य लेख की ओर बढ़ना पड़ेगा.   

सविनय अवज्ञा आंदोलन – Civil disobedience movement in Hindi

असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप गांधीजी के लिए जनता का समर्थन बढ़ा. इसके बाद स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की पृष्ठभूमि में कई घटनाएं हुईं. आतंकवाद का जन्म, इसके खिलाफ ब्रिटिश सरकार का दमन, साइमन कमीशन की अस्वीकृति इत्यादि कई घटनाएं घटने के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने किसी प्रकार की जागरूकता नहीं दिखाई थी. परिणामस्वरूप, महात्मा गांधी ने 1930 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एक और हुंकार लगाया ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ के माध्यम से. इससे भारत में ब्रिटिश सरकार की छवि खराब हुई.

आंदोलन की पृष्ठभूमि

असहयोग आंदोलन के बाद से गांधी के नेतृत्व से कुछ नेता असंतुष्ट थे. मानवेंद्रनाथ रॉय पहले भारतीय ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ के लिए चुने गए थे. 1924 में, मुजफ्फर अहमद और श्रीपाद अमृत डांगे को भारत में कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रसार के आरोप में कानपुर षड्यंत्र में शामिल अन्य आतंकवादियों के साथ अदालत में दोषी ठहराया गया था. 1924 में ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन संघ’ का गठन हुआ और 1928 में चंद्रशेखर आज़ाद ने इसका नाम बदलकर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संघ’ रखे थे. इस बीच, 1925 में 17 आतंकवादियों को ‘काकोरी षड्यंत्र’ में लंबी जेल की सजा सुनाई गई. 8 अप्रैल, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ का विरोध किया था. फिर उन्हें बंदी कर लिया गया.

साइमन कमीशन

साइमन कमीशन का गठन 1927 में 1919 भारतीय शासन अधिनियम के क्रियान्वयन को देखने के लिए किया गया था; लेकिन सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इसमें एक भी भारतीय शामिल नहीं था. 1928 में साइमन कमीशन के भारत में प्रवेश करते ही, भारतीयों ने “साइमन गो बैक” के नारे के साथ आयोग के सदस्यों को काले झंडे दिखाए. देश भर में हड़तालें हुईं. राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और विभिन्न भारतीय संगठनों ने साइमन कमीशन का कड़ा विरोध किया.

लाहौर कांग्रेस         

साइमन कमीशन की वापसी के बाद, जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में दिसंबर 1929 में राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ प्रस्ताव को अपनाया गया. पहला तिरंगा 31 दिसंबर 1929 को फहराया गया था. 26 जनवरी, 1930 को पहला स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया. कांग्रेस ने यह भी तय किया है था कि गांधीजी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन का शुभारम्भ किया जायेगा. ब्रिटिश सरकार के मनमाने शासन के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ.

लॉर्ड इरविन को गांधीजी का प्रस्ताव

अवैध आंदोलन शुरू करने से पहले, गांधीजी ने 11-सूत्रीय शासन सुधार का एक पत्र तैयार करके और इसे ब्रिटिश सरकार के सामने प्रस्तुत किया. लॉर्ड इरविन को लिखे एक पत्र में, गांधीजी ने उन्हें सभी सुधारों को स्वीकार करने की सलाह दी. गांधीजी ने चेतावनी दिए थे की अगर ब्रिटिश सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है, तो वह मजबूर होकर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करेंगे; लेकिन इरविन ने गांधी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. परिणामस्वरूप, गांधीजी ने 1930 में एक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया.

आंदोलन की कार्य प्रक्रिया

गांधीजी ने यह आंदोलन के लिए कई कदम उठाए. हजारों भारतीय इन आवश्यक दैनिक आवश्यकताओं की तैयारी से वंचित थे क्योंकि उन्हें कानून द्वारा समुद्री जल से नमक बनाने से रोक दिया गया था. महात्मा गांधी ने उनके इस अधिकार को वापस करने के लिए दृढ़ संकल्प किया था. आंदोलन का एक अन्य तरीका लोगों को शराब, अफीम और विदेशी सामान बेचने वाली दुकानों के सामने विचार देकर इन सभी सामानों को न खरीदने के लिए राजी करना था, इस कार्यक्रम में विदेशी कपड़ों में अग्नि संयोग करना और सरकार को करों का भुगतान न करना भी शामिल था. छात्रों को सरकारी स्कूलों का बहिष्कार करने और सरकारी नौकरी छोड़ने का आह्वान किया गया.

ऐतिहासिक दांडी यात्रा

दांडी यात्रा 12 मार्च, 1930 को शुरू हुआ. महात्मा गांधी उस दिन 78 स्वयंसेवकों के साथ साबरमती आश्रम से निकल कर 200 मील दूर पर गुजरात के तट पर स्थित दांडी की ओर यात्रा किया था. रास्ते में विभिन्न जगहों पर उनका स्वागत किया गया. लोगों को संबोधित करते हुए, गांधीजी ने कहा –

‘भारत में ब्रिटिश शासन ने एक महान देश की नैतिक, भौतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को नष्ट कर दिया है. मैं इस शासन को अभिशाप मानता हूं. मैं सरकार की इस व्यवस्था को नष्ट करने के लिए सामने आया हूं. राजद्रोह मेरा धर्म बन गया है, हमारा संघर्ष अहिंसा का संघर्ष है.’

6 अप्रैल, 1930 की सुबह, गांधीजी ने दांडी के तट से मुट्ठी भर नमक लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया. यह ब्रिटिश सरकार के लिए एक सीधी चुनौती थी. गांधीजी ने गुजरात के धरासन में नमक के गोदामों के सामने शांतिपूर्ण सत्याग्रह करने का आह्वान किया. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अवैध घोषित करके गांधी सहित कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

आंदोलन की प्रगति

गांधीजी के प्रतिबंध के बावजूद, जन आंदोलन तेज हो गया. देश में लगभग हर जगह नमक कानून तोड़े गए. उत्तर प्रदेश, बॉम्बे और मद्रास में, लोगों ने सरकार को कर देने से इनकार कर दिया. बिहार, ओडिशा और बंगाल में, विदेशी कपड़ों पर विशेष रूप से प्रतिबंध लगाया गया था. मध्य प्रदेश में, किसानों ने करों का भुगतान करने से इनकार कर दिया. आश्चर्यजनक रूप से, कई महिलाएं इस आंदोलन में शामिल हुए थे.

ब्रिटिश सरकार की कार्यपंथा

यह आंदोलन भारतीयों द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक विरोध था. यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने पहले चरण में इसे गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन बाद में इस आंदोलन की व्यापकता को देखते हुए कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर हो गए. गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू और कई कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. अलग-अलग जगहों पर हजारों लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. लाठी-प्रहार में कई घायल हो गए; लेकिन ब्रिटिश सरकार आंदोलन को दबाने में असमर्थ थी.

परिणाम: पहली गोलमेज सम्मेलन

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को शांत करने की कोशिश की. पहला गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर, 1930 को लंदन में आयोजित किया गया था. भारत और इंग्लैंड के कुल 89 लोगों को इस आयोजन के लिए चुना गया था लेकिन महात्मा गांधी को आमंत्रित नहीं किया गया था. परिणामस्वरूप, कांग्रेस ने इसे अवरुद्ध कर दिया. बैठक का उद्देश्य साइमन कमीशन पर चर्चा करके भारत के भविष्य के शासन के बारे में नीति का निर्धारण करना था. भारत को एक अधिराज्य पद का दर्जा देने के मुद्दे पर चर्चा की गई; लेकिन वहां कोई मजबूत सिद्धांत नहीं लिया जा सका.

गांधी-इरविन समझौता

इस बीच, राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ भारत के शासन पर चर्चा करने के लिए ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेता जल्दी में थे. उनके निर्देशन में, इरविन ने 26 जनवरी, 1931 को गांधी सहित कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को मुक्त कर दिया. बाद में गांधी और इरविन के बीच 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ. यह गांधी-इरविन समझौते के रूप में प्रसिद्ध है. समझौते के परिणामस्वरूप, इरविन ने देश के सभी कांग्रेस कैदियों को मुक्त कर दिया. इरविन ने इस समझौते में गांधी से कुछ वादे भी किए. परिणामस्वरूप, गांधीजी ने आंदोलन को स्थगित कर दिया और द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सहमत हुए. इस समझौते का सुभाष चंद्र बोस और अन्य नेताओं के नेतृत्व वाले वामपंथी दलों ने कड़ा विरोध किया, क्योंकि इसमें भारत की पूर्ण स्वराज को प्रतिबिंबित नहीं किया गया था.

द्वितीय गोलमेज बैठक

गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंग्लैंड गए. यह बैठक दिसंबर 1931 में प्रधान मंत्री रामसे मैकडोनाल्ड की अध्यक्षता में बुलाई गई थी. चर्चिल ने गांधीजी की ‘अर्ध-नग्न फकीर’ कह कर समालोचना की, जबकि सम्राट जॉर्ज पंचम ने धमकी दी कि अगर उन्होंने अपनी सरकार के साथ सहयोग नहीं किया तो वे मशीन गन और बम के साथ भारतीयों को उड़ा देंगे. गांधीजी ने मुस्कुराते हुए कहा – “मेरे देशवासी आपके बम को पटाखा के समान देखते है”. इस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के परिणाम सही नहीं था. भारतीयों की मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया. भेदभाव के माध्यम से ब्रिटिश शासन को मजबूत करने का प्रयास किया गया. महात्मा गांधी अपमान से परेशान होकर भारत लौट आए और फिर से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया.

तीसरा गोलमेज सम्मेलन

तीसरा गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1932 में बुलाई गई थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किसी प्रतिनिधिमंडल इसमें भाग नहीं लिया. सम्मेलन के अंत में एक श्वेत पत्र जारी किया गया. इसे विस्तार से चर्चा करने के लिए संसद को भेजा गया था. इस बीच, समुदाय-विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों और अन्य मुद्दों पर भारतीय नेताओं के बीच मतभेद उत्पन्न हुए. इसलिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1933 में आंदोलन को रोकने का फैसला किया और 1934 में आंदोलन वापस ले लिया. कुछ समय के लिए, महात्मा गांधी सक्रिय राजनीति से हट गए.

सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को अधिक सक्रिय बना दिया. यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के शासन को एक बड़ा झटका दिया. ब्रिटिश सरकार का डर अब भारतीयों को दबा नहीं सकता था. और यह भारतीयों की सफलता थी.

ये था हमारा लेख. उम्मीद है कि यह आंदोलन के बारे में आपको सबकुछ पता चल गया होगा. अगर आपको यह लेख को लेकर कुछ कहना है, तो हमें जरूर बताएं. धन्यवाद.

आपके लिए:-                          

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भारत छोड़ो आंदोलन – Quit India Movement In Hindi https://hindibichar.in/bharat-chhodo-andolan-hindi/ https://hindibichar.in/bharat-chhodo-andolan-hindi/#respond Fri, 26 Mar 2021 03:39:26 +0000 http://hindibichar.in/?p=768 महात्मा गांधी के अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम संघर्ष 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement In Hindi) ...

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महात्मा गांधी के अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम संघर्ष 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement In Hindi) था. उन्होंने अंग्रेजों को भारतीय मिट्टी से दूर रखने के लिए “कर या मृत्यु” का आह्वान किया था. यह आंदोलन महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल, असम और ओडिशा आदि स्थानों में व्यापक था. लोगों ने टेलीफोन तारों को काट दिया, रेलवे लाइनों को तोड़ दिया, और ब्रिटिश कर्मचारियों को घरेलू वस्तुओं का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. चलिए इस आंदोलन के बारे में विस्तार रूप से जानते है.  

भारत छोड़ो आंदोलन – Quit India Movement In Hindi

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ होने के साथ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक और आयाम का अनावरण हुआ था. राष्ट्र के पिता महात्मा गांधी उस समय हैरान रह गए जब 1941 में भारत के दौरे पर आए क्रिप्स मिशन ने भारत को विभाजित करने का एक सुविचारित तरीका खोजा था. उन्होंने महसूस किया कि अंग्रेजों को एक और पल के लिए भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं था. उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने की सलाह दी. वह अंग्रेजों के नकारात्मक रवैये से व्यथित थे. अगस्त 1942 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बॉम्बे सत्र में ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव’ को अपनाया गया. फिर भारत में “भारत छोड़ो आंदोलन” शुरू हुआ, जिसे “अगस्त क्रांति” के रूप में जाना जाता है.

आंदोलन की पृष्ठभूमि

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश प्रधान मंत्री लेबर पार्टी के एक प्रमुख नेता सर स्टेफोर्ड क्रिप्स ने भारतीय नेताओं के साथ परामर्श किया और उन्हें देश की सरकार के गठन पर टिप्पणी करने के लिए भेजे गए थे. इसे ‘क्रिप्स मिशन’ के रूप में जाना जाता है. विभिन्न दलों के नेताओं के परामर्श से, क्रिप्स ने भारत के शासन पर टिप्पणी की. क्रिप्स ने भारत में औपनिवेशिक स्वायत्तता की शुरुआत का प्रस्ताव रखा था. भारत के लिए एक संविधान बनाया जाएगा और अगर कोई राज्य इसे स्वीकार नहीं करता है तो उसके लिए एक नया संविधान बनाया जाएगा. इसमें भारत विभाजन की संभावना होने के कारण से गांधीजी नाराज थे. दूसरा, जापान ने बर्मा पर कब्जा करने के बाद वहां से लौटे भारतीय शरणार्थियों ने अंग्रेजों के अत्याचारों का वर्णन किया, जिससे कई नेता नाराज व्याकुल हो गए थे. इसलिए, कांग्रेस को एहसास हुआ कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने का समय आ गया था. सिंगापुर, मलाया और बर्मा में अंग्रेजों को हराने के बाद शायद जापान भारत पर आक्रमण करदेगा, यही कारण है कि वजह से कांग्रेस के नेताओं चाहते थे की भारतीय अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दे. इन सभी कारणों को भारत छोड़ो आंदोलन की रीढ़ माना जाता है.

भारत छोड़ो प्रस्ताव   

8 अगस्त, 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बॉम्बे सत्र में, महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो’ के प्रस्ताव को भारी समर्थन के साथ स्वीकार किया गया था. उस शाम लोगों को संबोधित करते हुए, गांधीजी ने कहा –

“इस क्षण से, पुरुष और महिलाएं, आप सभी अपने आप को एक स्वतंत्र इंसान के रूप में सोचिये.

मैं पूरी आजादी के अलावा किसी और चीज से संतुष्ट नहीं होऊंगा.

हम करेंगे या मरेंगे.             

हम भारत को आजाद करेंगे या इस प्रयास में मरेंगे.”

गांधी के उद्बोधन ने पूरे देश में हलचल मचा दी; लेकिन 9 अगस्त, 1942 की सुबह से, ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया था.

कार्य करने का तरीका

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, कांग्रेस ने निम्नलिखित कदम उठाए थे –

  1. किसान अपना बकाया भुगतान नहीं करेंगे और राजस्व अधिकारियों या पुलिस अधिकारियों इस कार्य में विरोध करेंगे.
  2. ब्रिटिश कर्मचारियों को खाद्य द्रव्य न बेचें.
  3. कागज के नोट स्वीकार नहीं किए जाएंगे.
  4. लोगों को हमेशा अहिंसा द्वारा निर्देशित होने की सलाह दी जाएगी.

विभिन्न स्थानों पर आंदोलन : महाराष्ट्र

यह आंदोलन महाराष्ट्र में शुरू किया गया था. सरकारी संस्थानों पर हमला किया गया. भारत छोड़ो आंदोलन के खबर को प्रचार करने के लिए बॉम्बे में एक वायरलेस केंद्र स्थापित किया गया था. ब्रिटिश विरोधी विद्रोह पुणे, सोलापुर, नासिक, सतारा और अहमदनगर में व्यापक रूप से फैला हुआ था. सातारा में, लोगों ने ब्रिटिश शासन को त्याग दिया और एक समानांतर सरकार बनाई.

कर्नाटक

कर्नाटक में, आंदोलन बहुत चालाकी के साथ प्रबंधित हुआ था. भारतीयों ने 23 रेलवे स्टेशनों पर हमला किया, 35 डाकघर नष्ट कर दिया गया और कई सरकारी इमारतों को नष्ट कर दिया गया था.

गुजरात

गुजरात में हड़ताल का आह्वान किया गया था. स्कूल और कॉलेज बंद कर दिया गया. नडियाद में आंदोलन के बारे में प्रचार करके समय पचास छात्रों की गोली मारकर हत्या कर दी गई. डकोर, चकलासी और भद्रा में भी गोली चलाना हुई थी.

बिहार          

11 अगस्त, 1942 को बिहार की राजधानी पटना में पुलिस की लाठीचार्ज को न डर के पटना सचिवालय के पूर्वी द्वार में छात्रों ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया. मुजफ्फरपुर कटरा पुलिस स्टेशन में, लोगों ने पुलिस से बंदूकें और हथियार छीन लिए थे. उत्तरी भागलपुर में सियाराम सिंह के नेतृत्व में सुल्तानपुर में एक समानांतर सरकार बनाई गई थी. वैर थाना पर हमला किया गया. कई पुलिस स्टेशन, पोल, सड़क आदि नष्ट कर दिया गया.

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में, भारत छोड़ो आंदोलन व्यापक था. बलिया, आजमगढ़, गाजीपुर, बस्ती, गोरखपुर, सुल्तानपुर और बनारस आदि स्थान में इसके प्रभाव बहुत था. गाजीपुर के हर पुलिस स्टेशन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया. बनारस विश्वविद्यालय के छात्रों ने उनके प्रशासन को बाधित किया था. ब्रिटिश सरकार ने सेना और घोड़ों की पुलिस की मदद से प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश करते थे.

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के नागपुर में सभी पुलिस स्टेशन जनता के नियंत्रण में था. सरकार ने चिमूर में गोलीबारी की थी. लोगों के हमले में एक मजिस्ट्रेट, एक डिप्टी तहसीलदार, एक सर्कल पुलिस सब-इंस्पेक्टर और एक कांस्टेबल मारे गए. बैतूल, अमरावती, चंदा और अन्य स्थानों में, आंदोलन काफी भयंकर था.

बंगाल

कोलकाता में आंदोलन इतना व्यापक था कि बॉम्बे मेल, दून एक्सप्रेस और पार्सल एक्सप्रेस हावड़ा स्टेशन को नहीं छोड़ पाए थे. तामलुक उपशाखा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुलकर विद्रोह किया था. तामलुक में “विद्युत वाहिनी” नामक एक राष्ट्रीय सेना का गठन किया गया था. तामलुक पुलिस स्टेशन की घेराबंदी के दौरान पुलिस की गोलीबारी में मातंगिनी हाजरा, 73 वर्षीय महिला, तब तक राष्ट्रीय ध्वज धारण कर रही थीं, जब तक उन्होंने अंतिम सांस नहीं ली. प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक राष्ट्रीय सरकार का गठन किया गया था. बेशक, ब्रिटिश सरकार ने बाद में इन सभी सरकारों को रहने नहीं दिया था.

असम

सिलचर रेलवे स्टेशन पर सेना को भेजा गया खाना को नष्ट कर दिया गया और पेट्रोल की एक वैगन को जला दी गई. गोहपुर पुलिस स्टेशन में राष्ट्रीय ध्वज फहराया थे हुए कनकलता बरुआ को पुलिस ने गोली मार कर हत्या कर दी थी.

ओडिशा

ओडिशा में भी भारत छोड़ो आंदोलन तेज हो गया था. लक्ष्मण नायक को कोरापुट में आंदोलन प्रबंधित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें बरहमपुर जेल में फांसी दी गई थी. कटक, पुरी, गंजाम, बालेश्वर, भद्रक और संबलपुर में भी भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी.

दक्षिण भारत और अन्य स्थानों पर

यह आंदोलन दक्षिण भारत के भीमवरम, कोलेंगोडे और तमिलनाडु में व्यापक था. कोयंबटूर सैन्य हवाई अड्डे को आग लगा दी गई थी. तमिलनाडु के सभी कपड़े कारखाने बंद कर दिए गए. भारत छोड़ो आंदोलन दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, कराची और सिंध में भी प्रबंधित हुआ था.

परिणाम      

सबसे पहले, इस आंदोलन ने भारतीयों को बहादुर बनाया. गांधीजी के कही हुई – “कर या मरो” (Do or Die) लोगों के बीच एक प्रेरणा का बड़ा स्रोत था. इसलिए लोगों ने ब्रिटिश सरकार की गोलियों और लाठीचार्ज को डरे नहीं गए थे. दूसरा, इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की आंखें खोल दीं. उन्होंने महसूस किया कि भारतीयों को अब डर से शासन नहीं किया जा सकता है. इसलिए उन्होंने भारत में वैकल्पिक प्रणाली शुरू करने के बारे में सोचा. बेशक यह बाद में सच हुआ था.

तीसरा, आंदोलन के बाद, अंग्रेजो ने मुसलमानों को अपना समझने लगे. इसके बाद मुस्लिम लीग ब्रिटिश शासन के करीब हो गई. मुहम्मद अली जिन्ना के कहने पर मुसलमानों ने आंदोलन को बंद कर दिया. इसलिए ब्रिटिश सरकार ने जिन्ना के प्रति उदारता दिखाना शुरू कर दिया था. परिणामस्वरूप, भारत निकट भविष्य में विभाजित हो गया.

अंत में, आंदोलन ने भारतीयों के सामने महात्मा गांधी की छवि को मजबूती से स्थापित किया. वह स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक निर्विवाद नेता के रूप में उभरे. उनकी प्रेरणा के तहत, भारतीयों ने स्वतंत्रता संग्राम जारी रखा और ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर करने के लिए दृढ़ संकल्प लिए थे.

Conclusion

वास्तव में, भारत छोड़ो आंदोलन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में माइलस्टोन रूप में माना गया था. इसने स्वतंत्रता के लिए भारतीयों के मन में एक नया उन्माद पैदा किया था. बड़े उत्साह के साथ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए.

यह था हमारा लेख भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement In Hindi). अगर आपको इस आंदोलन के बारे में और कुछ पता है, तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं.

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भारतीय संविधान – Indian constitution in Hindi https://hindibichar.in/bhartiya-samvidhan-in-hindi/ https://hindibichar.in/bhartiya-samvidhan-in-hindi/#respond Tue, 23 Mar 2021 03:42:25 +0000 http://hindibichar.in/?p=764 भारतीय संविधान – Indian constitution in Hindi भारत को स्वतंत्रता मिलने से बहुत पहले देश के लिए तैयारी ...

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भारतीय संविधान – Indian constitution in Hindi

भारत को स्वतंत्रता मिलने से बहुत पहले देश के लिए तैयारी शुरू हो गई थी. मार्ले-मिंटो सुधार, मोंटेंग्यु-चेम्सफोर्ड सुधार, 1935 भारतीय शासन अधिनियम, 1947 भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम आदि संविधान लागू होने से पहले कई स्तंभ थे. बाबासाहेब अम्बेडकर के तत्वावधान में लागू किया गया भारत का संविधान जो दुनिया का सबसे बड़ा और लिखित संविधान है.

संविधान सभा

कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव के अनुसार, यह निर्णय लिया गया था कि चुनाव के माध्यम से संविधान सभा (Constituent Assembly)  का गठन किया जाएगा. 9 दिसंबर, 1946 को दिल्ली में संविधान सभा की गठन किया गया था. वहां सच्चिदानंद सिन्हा ने अस्थायी अध्यक्ष रूप में पदभार संभाला. लेकिन दो दिन बाद 11 दिसंबर 1946 को राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया. और हरेंद्र मुखर्जी उपाध्यक्ष बने. यह सभा के दो मुख्य कार्य थे – भारत के लिए एक संविधान बनाना और नए संविधान के बनने तक एक अस्थायी संसद के रूप में कार्य करना. विभाजन के बाद, संविधान सभा के सदस्यों की संख्या गिरकर 229 हो गई.

प्रारूप समिति

प्रारूप समिति (Draft Committee) को भारत के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने का काम सौंपा गया था. इस समिति के अध्यक्ष बाबासाहेब अम्बेडकर थे. उन्हें भारतीय संविधान के संस्थापक या निर्माता के रूप में चित्रित किया जाता है. उनके अलावा एन. गोपालस्‍वामी अयंगर, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, केएम मुंशी, मोहम्मद सादुल्लाह, एन. माधव राव और टी. कृष्णमाचारी इस समिति के सदस्य थे. बी एन. राव संवैधानिक सलाहकार के रूप में उन सभी की मदद कर रहे थे. इस समिति ने 4 नवंबर, 1948 को संविधान सभा में संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया.

सत्र का समय

संविधान सभा 9 दिसंबर, 1946 को शुरू हुई और 26 नवंबर, 1949 तक दो साल, 11 महीने, 17 दिन तक चली. कुल 11 सत्रों में इसकी बैठक 165 दिनों तक चली. संविधान का प्रारूप के ऊपर 114 दिनों तक चर्चा हुई थी. 7,635 प्रस्तावित संशोधनों में से 2,473 पर चर्चा की गई और आवश्यक संशोधन को अपनाया गया. यह संविधान को 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था, और 26 जनवरी, 1950 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा इसकी पुष्टि की गई थी और पूरे देश में पारित किया गया था.  

संविधान का दृष्टिकोण 

संविधान के दृष्टिकोण ने भारतीयों के सपनों की प्रकृति को प्रतिबिंबित किया.

  1. भारत को एक स्वतंत्र और सार्वभौम देश बनाया जाएगा, और उसके भविष्य के शासन के लिए एक संविधान बनाया जाएगा.
  2. भारत एक स्वतंत्र सार्वभौम राष्ट्र होगा जिसमें भारतीय राज्य और ब्रिटिश शासित भारत के साथ शामिल होने के इच्छुक क्षेत्र होंगे.
  3. भारत सरकार की सभी शक्तियां भारतीयों से प्राप्त की जाएगी.
  4. भारतीयों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, अवसर की स्थिति और कानून, सामाजिक, कानूनी और नीतिगत सोच, पेशे, विश्वास, संघ, कार्य और धर्म के क्षेत्रों में स्वतंत्रता दी जाएगी.
  5. अल्पसंख्यकों, उत्पीड़ितों, उपेक्षितों और आदिवासियों के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी.
  6. जल, थल और आकाश सहित राष्ट्र की सीमाएं सामंजस्य और संरक्षित होंगी.
  7. यह प्राचीन राष्ट्र दुनिया के न्याय को अधिकार करेगा और मानव जाति के कल्याण और विश्व शांति की स्थापना के लिए प्रयास करेगा.

प्रस्तावना

संविधान का दृष्टिकोण इसके प्रस्तावना से यह स्पष्ट प्रतीत होता है. संविधान की विशेष विशेषता इस प्रस्तावना में निहित है. भारत संविधान के प्रस्तावना में यह उल्लेख है की – “हम भारतीय हैं, भारत को एक सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक के रूप में स्थापित करने के लिए और अपने सभी नागरिकों को :

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय;

विचार, राय, धर्म और पूजा की स्वतंत्रता;                           

गरिमा और अवसर की समानता प्रदान करना;

और ईमानदारी से व्यक्ति और राष्ट्र की गरिमा और अखंडता सुनिश्चित करके उनके बीच भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए दृढ़ संकल्प;

24 नवंबर, 1949 को हमारी संविधान सभा में ऐसा करते हुए, हमने इस संविधान की पुष्टि, अधिनियमित और समर्पित किया है.”

संविधान की मूल विशेषताएं

वृहद लिखित संविधान

ब्रिटिश संविधान विशेषज्ञ आइवर जेनिंग्स के अनुसार, भारतीय संविधान दुनिया का सबसे वृहद लिखित संविधान है. इस वृहद होने का कारण भी है,

  1. शासन के लिए आवश्यक सभी कानून दर्ज किए जा रहे हैं.
  2. संविधान स्पष्ट, सरल और समझने में आसान है.
  3. केंद्रीय और राज्य प्रणालियों को अलग-अलग श्रृंखलित किया गया है.
  4. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हिस्सों को संविधान में जोड़ा गया है.

भारत गठन, नागरिकता, अधिकार, कर्तव्य, राष्ट्रीय दिशानिर्देश, राष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्रिमंडल, संसद, न्याय व्यवस्था, संघीय शासन, केंद्र और राज्य संबंध, राज्यपाल, राज्य मंत्री परिषद, विधानमंडल, आपातकाल परिस्थिति, कमजोर वर्ग के लिए विशेष व्यवस्था, अर्थ, चुनाव, लोक सेवा, राजभाषा आयोग और केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का आवंटन आदि संविधान में परिभाषित किया गया है.

ब्रिटिश संविधान की संसदीय और उत्तरदायी शासन, आयरलैंड संविधान की राष्ट्रीय निर्देश नीति, अमेरिकी संविधान से मौलिक अधिकार और संघीय शासन, जर्मन संविधान से राष्ट्रपति आपातकालीन शक्तियां और 1935 के भारत सरकार अधिनियम के कई अन्य प्रावधानों को भारत के संविधान में जोड़ा गया है. इसी तरह, अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन और फ्रांसीसी राष्ट्रीय क्रांति के आदर्श भारतीय संविधान के प्रस्तावना में परिलक्षित होते हैं. भारतीय संविधान के इस विशाल रूप को देखते हुए जेनिंग्स ने इसे वकीलों का स्वर्ग कहा है.

संघीय शासन

भारतीय शासन प्रणाली संघीय चरणबद्ध. हालाँकि संघीय (Federal) शब्द का उपयोग संविधान में नहीं किया गया है, लेकिन संघीय शासन के सभी तत्व भारत में लागू हैं. संविधान के पहले लेख में, भारत को राज्यों के संघ (Union of states) के रूप में वर्णित किया गया है. भारत का संविधान लिखित है. यह काफी हद तक अस्वीकार्य है. भारत में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के नाम पर दो शासन लागू किए जा रहे हैं. संविधान के अनुच्छेद 7 के अनुसार, क्षमता केंद्र और राज्यों के बीच वितरित की गयी है. केंद्रीय सूची भारतीय संसद में है और राज्य सूची राज्य विधानमंडल में है, जबकि संयुक्त सूची संसद और विधान सभा दोनों में है. एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने या संवैधानिक विश्लेषण पर विवादों को हल करने का अधिकार दिया गया है.

यद्यपि उपरोक्त कारणों से भारत को एक संघीय राष्ट्र कहा गया है, फिर भी कई भारतीय संविधान कारण हैं, जिससे कुछ व्यक्तियों के द्वारा एक एकात्मक राज्य (Unitary state) माना जाता है. भारतीय संविधान की क्षमता काफी हद तक केंद्रित है. संवैधानिक सांसदों ने विभाजनकारी और विदेशी शक्तियों का मुकाबला करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की तुलना में अधिक शक्तिशाली बना दिया है. स्वाभाविक समय में संघीय शासन को बाधित नहीं करने के लिए संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं.

एकल नागरिकता

भारत में एकल नागरिकता प्रचलित है. भारत में रहने वाला हर व्यक्ति केवल एक भारतीय नागरिक है. संविधान के अनुसार, भारत में कोई भी राज्य नागरिकता प्रदान नहीं कर सकता है. इसलिए हर कोई भारत का नागरिक है. दोहरी नागरिकता संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रचलित है जहाँ एक व्यक्ति अपने राज्य के साथ-साथ अमेरिका का नागरिक बन जाता है. लेकिन भले ही भारत का प्रत्येक नागरिक भारतीय संविधान और भारतीय संघीय राज्य का विरोध करते थे, लेकिन व्यवस्था राष्ट्र की एकता, अखंडता और एकजुटता को मजबूत करने के लिए है.

संसदीय शासन

ब्रिटिश शासन के ढांचे में भारत में संसदीय शासन प्रचलित है. इसे cabinet form of government कहा जाता है. कार्यपालिका और विधायिका मिलकर काम कर रहे हैं. भारत के राष्ट्रपति नाममात्र शासक है और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला मंत्रिमंडल वास्तविक शासक के रूप में कार्य करता है. राज्यों में यह व्यवस्था प्रचलित है. भारत में एक जिम्मेदार शासन लागू किया गया है. अगर विधानसभा के अधिकांश सदस्य कार्यकारिणी में अविश्वास व्यक्त करते हैं तो कार्यकारिणी को हटाने का प्रावधान है.

मौलिक अधिकार

फ्रांसीसी क्रांति और अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा भारतीय संविधान में परिलक्षित होती है. संविधान के तीसरे भाग में 24 धाराएं के बीच, 12 से 35 धाराएं तक विभिन्न मानवाधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में वर्णित किया गया है. ये अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित हैं. भारतीय नागरिक धर्म, नस्ल या वर्ण की परवाह किए बिना 6 मौलिक अधिकारों का आनंद लेते हैं.

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के खिलाफ अधिकार
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

अतीत में, भारतीय नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 31 के तहत संपत्ति का अधिकार (Right to property) उपभोग करते थे. 1978 में, जनता सरकार ने इसे कानूनी अधिकार बना दिया. यदि कोई व्यक्ति, संस्था या सरकार मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय इसके खिलाफ सीधा मुकदमा दायर करके उसका निवारण कर सकते हैं. देश की सुरक्षा के लिए आवश्यक मानने पर मौलिक अधिकार स्थगित किए जा सकते हैं, लेकिन साधारण समय में यह संकुचित नहीं होता है.

मौलिक कर्तव्य

सोवियत रूस जैसे समाजवादी राष्ट्रों के संविधान में मौलिक कर्तव्य महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं. भारत के संविधान में कोई मौलिक कर्तव्य नहीं था. 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51 में 10 मौलिक कर्तव्यों को लागू किया गया है. इसके वजह से भारतीय नागरिकों को उनके कर्तव्यों से अवगत कराया गया है. ये कर्तव्यों मुख्य रूप से देशभक्ति हैं. राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान, भारतीय संप्रभुता का संरक्षण, एकता और भाईचारे की स्थापना, हिंसा से बचें, राष्ट्रीय संपत्ति और प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण, धर्म, भाषा, क्षेत्रवाद आदि के शीर्ष पर रहना, मिश्रित संस्कृति का महत्व वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवता आदि के लिए पोषण की स्वीकृति करना, राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना आदि मौलिक कर्तव्यों में शामिल है.

लोककल्याणकारी राज्य

भारत में राम राज्य स्थापित करना गांधीजी का सपना था. इसको पूरा करने के लिए, संविधान निर्माताओं ने भारत को एक लोक कल्याणकारी राज्य का रूप दिया है. संविधान के विभिन्न वर्गों में नागरिकों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं. भारत में एक सुनियोजित अर्थव्यवस्था की प्रचलन द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त सफलता मिली है. भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था और समाजवादी नीतियों ने पुलिस राज्य के बजाय भारत को एक लोककल्याणकारी राज्य में बदल दिया है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक एकता के बीच समन्वय स्थापित करके भारतीयों की सामूहिक बेहतरी के लिए कार्रवाई की गई है.

धर्मनिरपेक्ष राज्य

हालाँकि भारत में विभिन्न धर्म मौजूद थे, लेकिन किसी भी धर्म को राष्ट्रीय धर्म के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी. संविधान के प्रस्तावना में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करके प्रत्येक नागरिक को धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता दी गई है. भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव की कोई नीति नहीं है. संविधान का अनुच्छेद 25 नागरिकों को धर्मांतरित करने, प्रचार करने और प्रसार करने की स्वतंत्रता देता है. किसी विशेष धर्म के विकास या धर्म के आधार पर किसी भी संस्था को सहायता से वंचित करने की नीति भारत में प्रचलित नहीं है, बल्कि, धार्मिक संस्थानों और धार्मिक समुदायों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थान सरकार और कानून के संदर्भ में समानता प्राप्त कर रहे हैं.

एकीकृत न्यायपालिका

भारत में एक अलग तरह की न्यायिक प्रणाली है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ और राज्य के लिए अलग-अलग न्यायपालिका है. जिले से लेकर केंद्रीय स्तर के सुप्रीम कोर्ट तक पूरी न्यायपालिका सामंजस्यपूर्ण और एकजुट है. इसलिए, भारतीय न्यायपालिका को एकीकृत न्यायपालिका कहा जाता है.

भारत में, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को उच्च प्राथमिकता दी जाती है. भारत के राष्ट्रपति से लेकर आम आदमी तक सभी के लिए कानून समान है. जब न्यायाधीश आपनी आसन पर होते हैं, तो वह अपराधी की स्थिति पर ध्यान दिए बिना कानून और अपराध पर ध्यान देते हैं. भारत में न्यायाधीशों को भय और पक्ष से दूर रखने का संवैधानिक प्रावधान है. न्यायाधीशों के नियुक्तियों, वेतन और रोजगार की शर्तों को संविधान द्वारा संरक्षित है. इसके वजह से अदालतों और न्यायपालिका को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में कोई कठिनाई का सामना करना नहीं पड़ता है. भारत के संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को पुनर्विचार (Judicial Review) करने का अधिकार दिया है. जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में इस क्षमता का दायरा व्यापक है, भारत में यह सीमित है.

लोकतांत्रिक संस्था

भारत का संविधान लोकतांत्रिक व्यवस्था की आवश्यकता पर जोर दिया है. केंद्रीय, राज्य और स्वायत्त निकाय लोकतांत्रिक सिद्धांतों द्वारा शासित होते हैं. ग्राम पंचायत से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल और राष्ट्रपति तक सभी संस्थाएं चुनाव के माध्यम से आयोजित की जाती हैं. संविधान नस्ल, धर्म, रंग, लिंग या जन्म स्थान की परवाह किए बिना सभी नागरिकों के समान उपचार के लिए प्रदान करता है. यह व्यवस्था लोकतंत्र का सार है. संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार सार्वजनिक वयस्क मतदान प्रचलित है. 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिक वोट देने के योग्य होते हैं. समाज में कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधित्व के लिए संविधान के अनुच्छेद 330 में विशेष व्यवस्था है. देश के चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए संवैधानिक व्यवस्था की गई है. यह मामले को देखने के लिए एक निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है.

लचीलापन और कठोर का मिश्रण

संविधान संशोधन प्रणाली के आधार पर इसे लचीला और कठोर बनाया जाता है. चूंकि भारत के संविधान में संशोधन सरल और जटिल दोनों है, इसलिए इसे लचीले और कठोर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. संविधान का अनुच्छेद 368 तीन प्रकार के संशोधन वर्णित किया गया है.

  1. एक नए राज्य का निर्माण, राज्य का नामकरण, राज्य में दूसरे मुख्यालय का निर्माण या उन्मूलन, नागरिकता, संसद का कोरम और अधिकार दोनों ही सदनों में एक साधारण बहुमत द्वारा संशोधित किए जाते हैं. यह एक लचीलापन (Flexible) प्रणाली है.
  2. नागरिकों के मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय दिशानिर्देशों में संशोधन, संसद के दोनों सदनों में कुल सदस्यों की संख्या का आधे से अधिक और उपस्थित दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन में होने का व्यवस्था है. यह एक कठोर व्यवस्था है.
  3. केंद्रीय और राज्य सूचीबद्ध मुद्दे, राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रियाओं, केंद्र और राज्यों के बीच विधायी क्षमता का वितरण, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय, केंद्र और राज्य की कार्यकारी क्षमता और संसद के राज्यों का प्रतिनिधित्व को और अधिक कठोर तरीके से संशोधित किया जा रहा है. 

अंतिम शब्द

भारतीय संविधान की तैयारी वास्तविक भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक अध्याय है. भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक संविधान है. संविधान एक नए युग के लिए एक चुनौती का प्रतिनिधित्व करता है, भारतीयों और नागरिकों को संप्रभुता के संरक्षण के लिए मार्गदर्शन करता है. यह संविधान पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श है.

भारतीय संविधान (India constitution in Hindi) के ऊपर ये था हमारा लेख. अगर आपको हमारे यह लेख के बारे और कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जानते है, तो हमें जरूर बताएं.

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सिंधु घाटी सभ्यता (Indus valley civilization in Hindi): भारत की सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु नदी के तट पर बनी थी. इस महान सभ्यता के खंडहरों की खोज 1921 में खुदाई से हुई थी. इस सभ्यता की खोज ने प्राचीन भारत के इतिहास में एक नया दिशा खोल दिया. यह ऐतिहासिक विश्लेषण से है कि यह वैदिक सभ्यता की तुलना में बहुत पुराना और बेहतर था. शहरी नियोजन, जल निकासी प्रणाली, वास्तुकला, वाणिज्य, व्यापार और धर्म, ने अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए इसे प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के बराबर बना दिया. भारत में और भारत के बाहर इस सभ्यता के प्रसार और विभिन्न स्थानों में इसके समान संदर्भ ने इसे एक विशेष दर्जा देने में मदद की. इस सभ्यता को ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ या ‘हड़प्पा संस्कृति’ या ‘हड़प्पा सभ्यता’ के नाम से जाना जाता है.

        सिंधु घाटी सभ्यता – Indus valley civilization in Hindi  

सिंधु घाटी सभ्यता : आविष्कार

भारत में ब्रिटिश शासन प्रचलित के समय 1921 में पश्चिमी पंजाब में रावी नदी के बाएं किनारे पर मोंटगोमरी जिले के हड़प्पा जिले में पहली बार भारत सरकार के पुरातत्व सर्वेक्षण के पक्ष में खुदाई की गई थी और इसके बाद सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दक्षिण में महेनजोदड़ो में इस सभ्यता की खोज की गई थी. यह सर जन मार्शल, राखाल दास बनर्जी और दयाराम सहानी जैसे पुरातत्वविदों के प्रयासों से संभव हुआ. 1946 में Sir Mortimer Wheeler ने वहाँ फिर से खुदाई करवाई थी. मोहनजोदड़ो शब्द का अर्थ है ‘mound of the dead. 1947 में भारत के विभाजन के बाद से, महेनजोदड़ो और हड़प्पा को पाकिस्तान में शामिल किया गया है. समय के साथ, इस सभ्यता के अवशेष भारत में और भारत के बाहर एक हजार से अधिक स्थानों पर खोजे गए हैं. सबसे पहले, हड़प्पा से खोज की गई इस सभ्यता का सामंजस्य हर जगह स्पष्ट है. इतिहासकार इसलिए भारत में सिंधु नदी के तट पर बनी इस प्राचीन सभ्यता का उल्लेख सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता या संस्कृति के रूप में करते हैं.

भौगोलिक विस्तार

सिंधु घाटी सभ्यता सिर्फ सिंधु नदी के तट पर नहीं बनी थी. यह भारत के भीतर और बाहर व्यापक था. पुरातत्व खुदाई से इसकी सीमा के बारे में अनुमान लगाई गई हैं. पश्चिम में अफगानिस्तान का मुंडिगक से शुरू होकर यह सभ्यता पूर्व में उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर तक विस्तृत थी. इसी तरह, उत्तरी जम्मू में मुंडा से लेकर दक्षिण में गुजरात में नर्मदा नदी के मुहाने पर अवस्थित भगतराव तक सभ्यता का विस्तार था. न केवल भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में हड़प्पा सभ्यता का गठन किया गया था, बल्कि भारत के बाहर कई अन्य देशों के साथ भी इसका घनिष्ठ संबंध था. हड़प्पा सभ्यता मेसोपोटामिया, ईरान और मध्य एशिया से अविभाज्य थी. इसलिए, भारत की इस प्राचीन सभ्यता ने अपने अतीत को आकार दिया.

अब तक हड़प्पा सभ्यता के 1,000 से अधिक केंद्र खोजे जा चुके हैं. हड़प्पा, महेनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, कोटदीजी, आमरी, मेहरगढ़, तारकिल्ला, गुमला, थरोरा और रहमानधरी इन सब पाकिस्तानी जगहों में यह सभ्यता देखने को मिलता है. पंजाब की रूपर, हरियाणा का बनवाली, बालू, मिताथल, भगवानपुर और राखीगढ़ी; राजस्थान का कालीबंगा; जम्मू का माँडा; उत्तर प्रदेश का बड़ागांव, मानपुर और आलमगीरपुर; गुजरात का लोथल, सुरकोटड़ा, रोजडी, भगतराव और महाराष्ट्र का दैमाबाद आदि स्थान में यह सभ्यता देखने को मिलता है. इसी तरह, अफ़गानिस्तान में शोरतुग़​ई, मुंडिगक, दम्ब, सादात आदि की पहचान हड़प्पा सभ्यता के केंद्रों के रूप में की गई है. पुरातत्वविद् अभी भी बोलन हिल, पूर्व-ईरानी सीमा, घाघरा नदी घाटी, सिंधु घाटी और लुप्त सरस्वती घाटी में खुदाई करके हड़प्पा संस्कृति के खंडहरों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. नए केंद्रों की खोज होने पर इस सभ्यता के बारे में बहुत सी जानकारी लोगों के सामने आएगी.

                           शहरी नियोजन और निर्माण

सिंधु घाटी सभ्यता का शहरी रचना वास्तव में मोहक था. यह एक कुशल वास्तुकार द्वारा बनाया गया था. नगर की सजावट अभिनव थी. सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों ने सड़कों, घरों, निकास, स्नानघर और खलिहान के हर पहलू में अपनी उत्कृष्टता का प्रदर्शन किया था. उनके शहर की योजना का एक विवरण नीचे दिया गया है.

किले और बस्ती क्षेत्र

हड़प्पा सभ्यता की मुख्य विशेषता नगर का निर्माण था. प्रत्येक नगर को दो भागों में विभाजित किया गया था. ऊंचे स्थानों पर किला बनाया गया था. शासक या पुजारी यहां रहते थे. शहरी बस्तियां किले के निचले हिस्से में विस्तार हुआ था. विभिन्न समुदायों के लोग वहां रहते थे. नगर के चारों तरफ दीवारें थीं. यह दीवारें संभवतः विदेशी आक्रमणों को रोकने के उद्देश्य से किया गया था. मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगा शहरों को इस ढांचे में डिजाइन किया गया था.

निवासस्थान

सिंधु सभ्यता के निवासी जली हुई ईंटें से घरों का निर्माण करते थे. इन ईंटों का अनुपात आमतौर पर 4: 2: 1 था. इस जली हुई ईंटें में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो रूपर, मेहरगढ़, आदि शहरों का निर्माण किया गया था. बेशक, अपवाद थे, खासकर कुछ जगहों पर. उदाहरण के लिए, कालीबंगा शहर के घर धूप में सूखने वाली ईंटों से बने थे. प्रत्येक घर में आमतौर पर एक बैठक, एक रसोईघर और एक शयनकक्ष होता था. प्रत्येक घर एक लंबे आंगन से जुड़ा था. प्रत्येक घर में आमतौर पर एक स्नानघर और एक कुआं होता था. जंगली जानवरों से रक्षा पाने के लिए प्रत्येक घर में ऊंची दीवारें थीं. हड़प्पा सभ्यता का निर्माण इस तरह के नवीन डिजाइन के साथ हुआ था.

सड़क

सिंधु घाटी सभ्यता की सड़कें बहुत चौड़ी थीं. शहर से सड़कें पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई थी. ड्रेनेज की खाई को सड़क के किनारे से जोड़ा गया था और शहर के अंत तक बढ़ाया गया था. हड़प्पा सभ्यता के सड़कों की जांच करके प्रोफेसर E.J.H. Mackay ने कहा है कि “सड़कों का निर्माण इस तरह से किया गया था कि इसके माध्यम से चलने वाली हवा शोषण पंप की तरह काम करके, शहर के पर्यावरण को प्राकृतिक तरीके से साफ रखता था”.

वृहद स्नानघर

हड़प्पा सभ्यता का मुख्य आकर्षण किला क्षेत्र में स्थित बड़ा स्नानागार था. मोहेंजो दारो में खोजा गया, यह स्नानागार 12 मीटर लंबा, 7 मीटर चौड़ा और 3 मीटर गहरा है. जिस बड़ा घर में यह स्थित था वही घर 55 मीटर लंबा और 33 मीटर चौड़ा था. इसके किनारे और नीचे बहुत सख्त थे. स्नानघर सीढ़ियों से जुड़ा हुआ था. पास के एक कमरे में एक बड़ा कुआं था. इसका उद्देश्य स्नानघर में पानी की आपूर्ति करना था. नालियों के सहारे पानी बाथरूम में प्रवेश करता था और दूषित पानी दूसरे नाले से होकर बाहर जाता था. स्नानघर के आसपास छोटे बड़े कमरे थे.

निकासी व्यवस्था

सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताओं में से एक इसकी जल निकासी व्यवस्था थी. इस सभ्यता के निवासियों ने स्वच्छता पर बहुत जोर देते थे. वे शहर के प्रदूषित पानी और कचरे को निकालने के लिए सही कदम उठा रहे थे. सड़क के दोनों ओर बड़ी-बड़ी नाला बनाई गई थी. इन नहरों का निर्माण जली हुई ईंटें में किया गया था. इन नहरों का निर्माण जली हुई ईंटें में किया गया था. नहरों को आच्छादन किया गया था. प्रत्येक घर की छोटी नहरें शहर की इन बड़ी नहरों से जुड़ी हुई थीं. परिणामस्वरूप, प्रत्येक घर से गंदा पानी और कचरा छोटी नहरों के माध्यम से आकर इन बड़े नहरों में गिरता था. इस बड़े नहरों का गंदा पानी और कचरा शहर के बाहर एक बड़े तालाब में गिरता था. नतीजतन शहर को प्रदूषण मुक्त रखा जाता था. ऐसी आधुनिक जल निकासी व्यवस्था प्राचीन सभ्यताओं के बीच नहीं पाई जाती है.

सिंधु घाटी सभ्यता की वास्तविक अवधारणा काफी आधुनिक और दिलचस्प थी. लंबी और चौड़ी सड़कें और प्रकाश व्यवस्था उनके स्वस्थ नागरिक जीवन के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं. आवास, स्नानघर और अभिनव जल निकासी व्यवस्था हड़प्पा निवासियों के बेहतर जीवन स्तर के बारे में जानकारी प्रदान करती है.

                                      कृषि

हड़प्पा सभ्यता के लोग मुख्य रूप से किसान थे. पुरातत्व उत्खनन से कृषि से जुड़े विभिन्न उपकरणों का पता चला है. वे हंसिया का उपयोग भी जानते थे. इसके मदद से वे विभिन्न फसलों की कटाई करते थे. कटाई के लिए गोल फर्श का उपयोग किया जाता था. उन्होंने गेहूं, चावल, जौ, कपास, राशि और विभिन्न सब्जियों का उत्पादन करते थे. बचा हुआ अनाज को भंडार में रखा जाता था. उनका कृषि मुख्य रूप से वर्षा जल पर निर्भर था. जहाँ आवश्यक था, उन्होंने खेती करने के लिए सिंधु नदी के पानी का उपयोग किया करते थे. वास्तव में, कृषि हड़प्पा सभ्यता का मुख्य आधार था.

जौ, गेहूं और खजूर सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख खाद्य पदार्थ थे. इस बात के भी प्रमाण हैं कि वे हरियाणा, गुजरात और अन्य स्थानों से धान की खेती कर रहे थे. चावल उनका मुख्य भोजन था. चावल के अलावा, वे कपास का भी खेती करते थे.   

                                     पालतू जानवर

सिंधु घाटी के निवासी विभिन्न प्रकार के जानवरों को पाल रहे थे. वे घर पर भैंस, गाय, भेड़, हाथी, और, ऊंट आदि रखते थे. वे घोड़ों और कुत्तों के उपयोग को नहीं जानते थे. सब मोहर इस बात का सबूत देते हैं कि वे बाघ, भालू और गैंडे जैसे जानवरों से परिचित हैं. बच्चों के लिए बने मिट्टी के खिलौने भी इस बात का प्रमाण देते हैं कि हड़प्पा सभ्यता के निवासी बंदर, चूहे, गिलहरी, बिल्ली और मोर जैसे जानवरों को जानते थे. कृषि के साथ-साथ पशुपालन से हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ था.

उन्होंने खेती करने के लिए बैल, भेड़ और ऊंट का इस्तेमाल करते थे. उनका उपयोग अनाज उत्पादन और परिवहन में किया जाता था. उन्होंने भोजन के रूप में हिरण, सूअर और बकरियों का उपयोग करते थे.

                                      व्यापार

हड़प्पा सभ्यता के लोग अपने उन्नत उद्योगों के साथ व्यापार पर ध्यान केंद्रित करते थे. इतना ही नहीं, भारत के बाहर सुमेर, अक्कादियन, मिस्र, फ़ारस की खाड़ी और मेसोपोटामिया  के साथ व्यापारिक संबंध भी स्थापित किए थे. मुहरों, माप और भार के लिए विभिन्न प्रकार के पत्थर टुकड़ों और विभिन्न आयात और निर्यात से उनके व्यापार व्यवसाय के बारे में जानकारी मिलती है.

वाणिज्यिक प्रणाली

हड़प्पा सभ्यता के मुख्य वाणिज्य केंद्रों में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो थे. शहर और आसपास के गांवों के बीच संबंध स्थापित करके इस सभ्यता का वाणिज्यिक व्यापार विकास किया था. हिंदुकुश और पश्चिमोत्तर सीमा से कई कीमती पत्थर आ रहे थे. राजस्थान से टिन और तांबा और कश्मीर से सोना वहाँ आ रहा था. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के शहरों में कई उत्पाद बनाए गए थे और हड़प्पा सभ्यता के लोग मांग को पूरा करने के साथ साथ बचे हुए द्रव्य को निर्यात किया जाता था.  

आयात और निर्यात  

हड़प्पा सभ्यता के निवासी आयात और निर्यात में सिद्ध थे. इस सभ्यता के निवासियों ने गेहूं, जौ, विभिन्न अनाज और कालीनों का निर्यात किया करते थे. दूसरी ओर, वे सोने, चांदी और कीमती पत्थरों का आयात कर रहे थे. उनके उत्पाद भारतीयों की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ भारत के बाहर के लोगों की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम थे.

                                   दूर देशों से संबंध

हड़प्पा के लोगों ने भारत के साथ और भारत के बाहर विभिन्न देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे. इस सभ्यता के निवासियों के सिंधु, पंजाब, राजस्थान, रूपर, लोथल, कालीबंगन और उन स्थानों के साथ व्यापारिक संबंध थे, जहां खोजे गए हड़प्पा संस्कृति प्रचलित था. भारत के बाहर, व्यापार अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ स्थापित किया गया था. यह व्यापार सड़क मार्ग से होता था. जलमार्ग पर भारत के बाहर मेसोपोटामिया के साथ इसके व्यापारिक संबंध बहुत करीब थे.

वास्तविक हड़प्पा सभ्यता का व्यापार सही से चल रहा था. मुख्य शहरों ने आस-पास के गांवों में कच्चे माल लाकर मांग के अनुसार माल बनाया करते थे और उन्हें विभिन्न स्थानों पर निर्यात करते थे.

                                     लिपि

हड़प्पा सभ्यता की लिपि पर कोई जानकारी नहीं मिली है. इतिहासकारों ने अभी तक हड़प्पा सभ्यता के निवासियों की भाषा या लिपि के किसी भी सबूत पर कब्जा नहीं किया है. अब तक 400 से अधिक लिपि संकेत खोजे गए हैं. वे कीलक लिपि में लिखे गए हैं. आश्चर्यजनक रूप से, इन लिपियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न चरणों में एक ही आकार की लिपि देखे गए हैं. इतिहासकारों का इस लिपि पर विचार अलग अलग है. कुछ इतिहासकारों ने इसे द्रविड़ भाषाओं, जैसे तमिल के साथ संबंध है बोलकर वर्णित करते हैं. और कुछ इतिहासकारों ये वर्णित करते हैं की, यह जो लिपि है ये आर्यन या संस्कृत भाषाओं से निकटता जुड़ा हुआ है.

                                     मोहर (Seal)     

हड़प्पा संस्कृति के लोग सील का उपयोग जानते थे. माल निर्यात करते समय, बंद बॉक्स या गोल पैकेट पर सील द्वारा इंगित किया जाता  था, यह दर्शाता है कि यह कहां का था और यह किस मालिक का है. मोहनजोदड़ो और लोथल से ऐसी कई सील की खोज की गई है.

ये मुहरें भिन्न भिन्न आकारों की पाई गईं है. ये सील के रंग सफेद, काले, भूरे और पीले थे. इतिहासकार कई चांदी और मिट्टी की मुहरों के बारे में जानकारी देते हैं. सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी इनका उपयोग व्यापार में करते थे.

समाप्ति

ये था हमारा लेख सिंधु घाटी सभ्यता (Indus valley civilization in Hindi). मुझे उम्मीद है कि आपको इस लेख से हड़प्पा सभ्यता के बारे में सभी जानकारी मिल गई होगी. अगर आपको सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में और कुछ पता है, तो हमें जरूर बताएं.

हड़प्पा कहाँ पर स्थित है?

हड़प्पा पश्चिमी पंजाब के मोंटगोमरी जिले में स्थित है.

मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित है?

मोहनजोदड़ो सिंध प्रांत के लरकाना जिला में स्थित है.

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