सविनय अवज्ञा आंदोलन – Civil disobedience movement in Hindi

स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे चरण में, गांधी ने “सविनय अवज्ञा आंदोलन” शुरू किया. 12 मार्च 1930 को सत्याग्रहियों के साथ दांडी यात्रा शुरू की. वहां उन्होंने समुद्र के पानी को छूकर नमक के लिए भारतीयों के अधिकार का दावा किया. 1930 में लंदन में ‘प्रथम गोलमेज सम्मेलन’ आयोजित हुआ था. लेकिन यह सम्मलेन का परिणाम भारत के लिए नकारात्मक था. इस बीच, गांधीजी और वायसराय इरविन के बीच गांधी-इरविन समझौता हुआ. समझौते के बाद, गांधीजी ने लंदन में 1931 की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया. यह आंदोलन के बारे में और विस्तार रूप से जानने के लिए आपको मुख्य लेख की ओर बढ़ना पड़ेगा.   

सविनय अवज्ञा आंदोलन – Civil disobedience movement in Hindi

असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप गांधीजी के लिए जनता का समर्थन बढ़ा. इसके बाद स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की पृष्ठभूमि में कई घटनाएं हुईं. आतंकवाद का जन्म, इसके खिलाफ ब्रिटिश सरकार का दमन, साइमन कमीशन की अस्वीकृति इत्यादि कई घटनाएं घटने के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने किसी प्रकार की जागरूकता नहीं दिखाई थी. परिणामस्वरूप, महात्मा गांधी ने 1930 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एक और हुंकार लगाया ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ के माध्यम से. इससे भारत में ब्रिटिश सरकार की छवि खराब हुई.

आंदोलन की पृष्ठभूमि

असहयोग आंदोलन के बाद से गांधी के नेतृत्व से कुछ नेता असंतुष्ट थे. मानवेंद्रनाथ रॉय पहले भारतीय ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ के लिए चुने गए थे. 1924 में, मुजफ्फर अहमद और श्रीपाद अमृत डांगे को भारत में कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रसार के आरोप में कानपुर षड्यंत्र में शामिल अन्य आतंकवादियों के साथ अदालत में दोषी ठहराया गया था. 1924 में ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन संघ’ का गठन हुआ और 1928 में चंद्रशेखर आज़ाद ने इसका नाम बदलकर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संघ’ रखे थे. इस बीच, 1925 में 17 आतंकवादियों को ‘काकोरी षड्यंत्र’ में लंबी जेल की सजा सुनाई गई. 8 अप्रैल, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ का विरोध किया था. फिर उन्हें बंदी कर लिया गया.

साइमन कमीशन

साइमन कमीशन का गठन 1927 में 1919 भारतीय शासन अधिनियम के क्रियान्वयन को देखने के लिए किया गया था; लेकिन सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इसमें एक भी भारतीय शामिल नहीं था. 1928 में साइमन कमीशन के भारत में प्रवेश करते ही, भारतीयों ने “साइमन गो बैक” के नारे के साथ आयोग के सदस्यों को काले झंडे दिखाए. देश भर में हड़तालें हुईं. राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और विभिन्न भारतीय संगठनों ने साइमन कमीशन का कड़ा विरोध किया.

लाहौर कांग्रेस         

साइमन कमीशन की वापसी के बाद, जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में दिसंबर 1929 में राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ प्रस्ताव को अपनाया गया. पहला तिरंगा 31 दिसंबर 1929 को फहराया गया था. 26 जनवरी, 1930 को पहला स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया. कांग्रेस ने यह भी तय किया है था कि गांधीजी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन का शुभारम्भ किया जायेगा. ब्रिटिश सरकार के मनमाने शासन के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ.

लॉर्ड इरविन को गांधीजी का प्रस्ताव

अवैध आंदोलन शुरू करने से पहले, गांधीजी ने 11-सूत्रीय शासन सुधार का एक पत्र तैयार करके और इसे ब्रिटिश सरकार के सामने प्रस्तुत किया. लॉर्ड इरविन को लिखे एक पत्र में, गांधीजी ने उन्हें सभी सुधारों को स्वीकार करने की सलाह दी. गांधीजी ने चेतावनी दिए थे की अगर ब्रिटिश सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है, तो वह मजबूर होकर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करेंगे; लेकिन इरविन ने गांधी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. परिणामस्वरूप, गांधीजी ने 1930 में एक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया.

आंदोलन की कार्य प्रक्रिया

गांधीजी ने यह आंदोलन के लिए कई कदम उठाए. हजारों भारतीय इन आवश्यक दैनिक आवश्यकताओं की तैयारी से वंचित थे क्योंकि उन्हें कानून द्वारा समुद्री जल से नमक बनाने से रोक दिया गया था. महात्मा गांधी ने उनके इस अधिकार को वापस करने के लिए दृढ़ संकल्प किया था. आंदोलन का एक अन्य तरीका लोगों को शराब, अफीम और विदेशी सामान बेचने वाली दुकानों के सामने विचार देकर इन सभी सामानों को न खरीदने के लिए राजी करना था, इस कार्यक्रम में विदेशी कपड़ों में अग्नि संयोग करना और सरकार को करों का भुगतान न करना भी शामिल था. छात्रों को सरकारी स्कूलों का बहिष्कार करने और सरकारी नौकरी छोड़ने का आह्वान किया गया.

ऐतिहासिक दांडी यात्रा

दांडी यात्रा 12 मार्च, 1930 को शुरू हुआ. महात्मा गांधी उस दिन 78 स्वयंसेवकों के साथ साबरमती आश्रम से निकल कर 200 मील दूर पर गुजरात के तट पर स्थित दांडी की ओर यात्रा किया था. रास्ते में विभिन्न जगहों पर उनका स्वागत किया गया. लोगों को संबोधित करते हुए, गांधीजी ने कहा –

‘भारत में ब्रिटिश शासन ने एक महान देश की नैतिक, भौतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को नष्ट कर दिया है. मैं इस शासन को अभिशाप मानता हूं. मैं सरकार की इस व्यवस्था को नष्ट करने के लिए सामने आया हूं. राजद्रोह मेरा धर्म बन गया है, हमारा संघर्ष अहिंसा का संघर्ष है.’

6 अप्रैल, 1930 की सुबह, गांधीजी ने दांडी के तट से मुट्ठी भर नमक लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया. यह ब्रिटिश सरकार के लिए एक सीधी चुनौती थी. गांधीजी ने गुजरात के धरासन में नमक के गोदामों के सामने शांतिपूर्ण सत्याग्रह करने का आह्वान किया. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अवैध घोषित करके गांधी सहित कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

आंदोलन की प्रगति

गांधीजी के प्रतिबंध के बावजूद, जन आंदोलन तेज हो गया. देश में लगभग हर जगह नमक कानून तोड़े गए. उत्तर प्रदेश, बॉम्बे और मद्रास में, लोगों ने सरकार को कर देने से इनकार कर दिया. बिहार, ओडिशा और बंगाल में, विदेशी कपड़ों पर विशेष रूप से प्रतिबंध लगाया गया था. मध्य प्रदेश में, किसानों ने करों का भुगतान करने से इनकार कर दिया. आश्चर्यजनक रूप से, कई महिलाएं इस आंदोलन में शामिल हुए थे.

ब्रिटिश सरकार की कार्यपंथा

यह आंदोलन भारतीयों द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक विरोध था. यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने पहले चरण में इसे गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन बाद में इस आंदोलन की व्यापकता को देखते हुए कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर हो गए. गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू और कई कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. अलग-अलग जगहों पर हजारों लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. लाठी-प्रहार में कई घायल हो गए; लेकिन ब्रिटिश सरकार आंदोलन को दबाने में असमर्थ थी.

परिणाम: पहली गोलमेज सम्मेलन

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को शांत करने की कोशिश की. पहला गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर, 1930 को लंदन में आयोजित किया गया था. भारत और इंग्लैंड के कुल 89 लोगों को इस आयोजन के लिए चुना गया था लेकिन महात्मा गांधी को आमंत्रित नहीं किया गया था. परिणामस्वरूप, कांग्रेस ने इसे अवरुद्ध कर दिया. बैठक का उद्देश्य साइमन कमीशन पर चर्चा करके भारत के भविष्य के शासन के बारे में नीति का निर्धारण करना था. भारत को एक अधिराज्य पद का दर्जा देने के मुद्दे पर चर्चा की गई; लेकिन वहां कोई मजबूत सिद्धांत नहीं लिया जा सका.

गांधी-इरविन समझौता

इस बीच, राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ भारत के शासन पर चर्चा करने के लिए ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेता जल्दी में थे. उनके निर्देशन में, इरविन ने 26 जनवरी, 1931 को गांधी सहित कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को मुक्त कर दिया. बाद में गांधी और इरविन के बीच 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ. यह गांधी-इरविन समझौते के रूप में प्रसिद्ध है. समझौते के परिणामस्वरूप, इरविन ने देश के सभी कांग्रेस कैदियों को मुक्त कर दिया. इरविन ने इस समझौते में गांधी से कुछ वादे भी किए. परिणामस्वरूप, गांधीजी ने आंदोलन को स्थगित कर दिया और द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सहमत हुए. इस समझौते का सुभाष चंद्र बोस और अन्य नेताओं के नेतृत्व वाले वामपंथी दलों ने कड़ा विरोध किया, क्योंकि इसमें भारत की पूर्ण स्वराज को प्रतिबिंबित नहीं किया गया था.

द्वितीय गोलमेज बैठक

गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंग्लैंड गए. यह बैठक दिसंबर 1931 में प्रधान मंत्री रामसे मैकडोनाल्ड की अध्यक्षता में बुलाई गई थी. चर्चिल ने गांधीजी की ‘अर्ध-नग्न फकीर’ कह कर समालोचना की, जबकि सम्राट जॉर्ज पंचम ने धमकी दी कि अगर उन्होंने अपनी सरकार के साथ सहयोग नहीं किया तो वे मशीन गन और बम के साथ भारतीयों को उड़ा देंगे. गांधीजी ने मुस्कुराते हुए कहा – “मेरे देशवासी आपके बम को पटाखा के समान देखते है”. इस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के परिणाम सही नहीं था. भारतीयों की मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया. भेदभाव के माध्यम से ब्रिटिश शासन को मजबूत करने का प्रयास किया गया. महात्मा गांधी अपमान से परेशान होकर भारत लौट आए और फिर से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया.

तीसरा गोलमेज सम्मेलन

तीसरा गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1932 में बुलाई गई थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किसी प्रतिनिधिमंडल इसमें भाग नहीं लिया. सम्मेलन के अंत में एक श्वेत पत्र जारी किया गया. इसे विस्तार से चर्चा करने के लिए संसद को भेजा गया था. इस बीच, समुदाय-विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों और अन्य मुद्दों पर भारतीय नेताओं के बीच मतभेद उत्पन्न हुए. इसलिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1933 में आंदोलन को रोकने का फैसला किया और 1934 में आंदोलन वापस ले लिया. कुछ समय के लिए, महात्मा गांधी सक्रिय राजनीति से हट गए.

सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को अधिक सक्रिय बना दिया. यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के शासन को एक बड़ा झटका दिया. ब्रिटिश सरकार का डर अब भारतीयों को दबा नहीं सकता था. और यह भारतीयों की सफलता थी.

ये था हमारा लेख. उम्मीद है कि यह आंदोलन के बारे में आपको सबकुछ पता चल गया होगा. अगर आपको यह लेख को लेकर कुछ कहना है, तो हमें जरूर बताएं. धन्यवाद.

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