ठोस अपशिष्ट प्रदूषण और प्रबंधन पर निबंध

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण और प्रबंधन पर निबंध: भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है। भारत, जिसकी जनसंख्या 1947 में 30 करोड़ थी, अब 140 करोड़ से अधिक है, जो इसे दुनिया का पहला सबसे अधिक आबादी वाला देश बनाता है। कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, परिवहन और बुनियादी ढांचे जैसे कई क्षेत्रों में उत्साहवर्धक बदलाव आये हैं। परिणामस्वरूप, लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है। यह देश के लिए एक अच्छी खबर है; लेकिन इसके विपरीत लोगों की दैनिक जरूरतों को पूरा करते करते अपशिष्ट के ढेर लग गए हैं। और यह हमारे पर्यावरण के लिए एक बहुत ही जटिल समस्या पैदा कर दी है। अपशिष्ट उत्पादन के लिए जिम्मेदार कुछ प्रमुख कारकों की चर्चा नीचे की गई है।

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण और प्रबंधन पर निबंध

प्रस्तावना

“ठोस अपशिष्ट प्रदूषण” एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा है जो संगठित प्रदूषण का हिस्सा है। यह विशेष रूप से उन अपशिष्टों से सम्बंधित है जो हमारे द्वारा बाहर फेंके जाते हैं और अक्सर अप्रचलित प्रक्रियाओं द्वारा परिष्कृत नहीं किए जाते हैं। इनमें खाद्य, औद्योगिक, निर्माण और सार्वजनिक स्थलों से उत्पन्न अपशिष्ट शामिल होते हैं।

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण की अधिकता पर्यावरण के लिए नुकसानकारी हो सकती है, जैसे कि यह पानी और मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा सकता है और जैविक ऊर्जा नष्ट कर सकता है। इसके अलावा, ठोस अपशिष्ट प्रदूषण नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव भी डाल सकता है, जैसे जलजनित रोगों को फैलाना और प्राकृतिक वातावरण को बिगाड़ना।

प्लास्टिक अपशिष्ट

प्लास्टिक अपशिष्ट अब हमारे देश के लिए एक बड़ी समस्या है। हमारे समाज में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता जा रहा है। अतः प्लास्टिक को इधर-उधर फेंकने से इन्हें मिट्टी में नहीं मिलाया जा सकता, जिसके कारण मिट्टी की नमी में कमी, भूजल स्तर में कमी, विभिन्न जल स्रोतों का प्रदूषित होना और इनके बड़ी मात्रा में जमा होने जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जिससे नहरों और नदी तलों में जल प्रवाह बाधित होता है।

शहरी क्षेत्र के ठोस अपशिष्ट

भारत में अब 500 से अधिक छोटे और बड़े शहर हैं और इन शहरों की जनसंख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार 2030 तक शहरी क्षेत्रों की जनसंख्या मौजूदा 33 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो जायेगी। जिससे प्रति वर्ष शहरी ठोस अपशिष्ट की मात्रा मौजूदा 4 मिलियन टन से बढ़कर 2047 तक 26 मिलियन टन हो जाएगी।

शहरी ठोस अपशिष्ट न केवल एक तकनीकी विफलता है, बल्कि जन जागरूकता की कमी और प्रशासनिक लापरवाही भी उतनी ही जिम्मेदार है। भारत के शहर इस पर अपने कुल बजट का केवल 20% खर्च करते हैं।

बायोमेडिकल अपशिष्ट:

बायोमेडिकल अपशिष्ट ने विभिन्न बीमारियाँ फैलाई हैं, जीवन को खतरे में डाला है और पर्यावरण को अस्वस्थ बनाया है। अस्पताल में रेडियोथेरेपी के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की ‘कोबाल्ट-60’ नामक रेडियोधर्मी धातु वाली मशीन शहर में कूड़े के ढेर में पड़ी थी। उसे वहां से हटाते समय नगर निगम के एक कर्मचारी (झाड़ूदार) की मौत हो गयी। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, रेडियोधर्मी धातु कोबाल्ट-60 के जहरीले विकिरण के कारण से ही उस कर्मचारी की मृत्यु हुई थी।

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट:

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से उपयोगी सामग्री कैसे बनाई जाए, इस विषय पर 22 फरवरी, 2010 को बाली, इंडोनेशिया में अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणविदों की एक सप्ताह लंबी बैठक आयोजित की गई। इस बैठक की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 तक दक्षिण अफ्रीका और चीन में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट की मात्रा 200 से 400% तक बढ़ जाएगी और भारत में यह 500% तक बढ़ जाएगी। भारत वर्तमान में प्रति वर्ष लगभग 3,80,000 टन इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है। इसमें से 100,000 टन अपशिष्ट रेफ्रिजरेटर से, 275,000 टन टेलीविजन से, 56,000 टन पर्सनल कंप्यूटर से, 4,700 टन प्रिंटर से और 1,700 टन मोबाइल फोन से उत्पन्न होता है।

उस समय अप्रैल 2010 में किए गए एक संयुक्त अध्ययन से पता चला कि भारत ने 2007 में 33,000 टन ई-कचरा उत्पन्न किया, और 2011 के अंत तक इसके बढ़कर 47,000 टन होने की उम्मीद थी। हालाँकि, 2020 तक यह उस दर से कितनी संख्या तक पहुँचेगा, इसकी कल्पना करना आसान है।

अभी तक भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन को नियंत्रित करने के लिए कोई विशिष्ट ई-अपशिष्ट कानून नहीं है। सितंबर 2009 में MAIT, GTZ, ग्रीनपीस और टैक्सिक्स लिंक ने संयुक्त रूप से ई-अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भारत सरकार को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।

खतरनाक अपशिष्ट:

भारत प्रति वर्ष 6-7 मिलियन टन संकटपूर्ण अपशिष्ट उत्पन्न करता है। तेजी से औद्योगीकरण और बढ़ती घरेलू मांग के कारण संकटपूर्ण अपशिष्ट बढ़ रहा है। अधिकांश रासायनिक अपशिष्ट जहरीले, विस्फोटक और खतरनाक होते हैं। खतरनाक कचरे के मुख्य स्रोत पेट्रोलियम उत्पाद, फार्मास्युटिकल उत्पाद, कीटनाशक (दवाएं), रासायनिक रंग कोयला उद्योग आदि हैं।

अपशिष्ट का प्रबंधन:

अपशिष्ट प्रबंधन एक बहुस्तरीय प्रक्रिया है। अपशिष्ट प्रबंधन के चार मुख्य पहलू हैं।

  • अपशिष्ट की मात्रा को कम करना,
  • अपशिष्ट का पुनर्चक्रण और पुनः निवेश,
  • अपशिष्ट उपचार,
  • व्यवस्थित अपशिष्ट संग्रहण, परिवहन और निपटान।

कुछ मामलों में, विभिन्न कच्चे माल के रूप में उपयोग करने के लिए अपशिष्ट को न्यूनतम रूप से उपचारित या शुद्ध किया जा सकता है। दूषित जल में मौजूद कुछ घातक तत्वों को सूक्ष्मजीवों द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता है। अपशिष्ट की पुनर्प्राप्ति के बाद, यदि इसमें कोई हानिकारक पदार्थ पाया जाता है, तो कुछ विशेष उपचार से इसके विषाक्त प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है। अपशिष्ट के भौतिक और रासायनिक गुणों को संशोधित करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। हमारे देश में प्लास्टिक को रिसाइकल कर दोबारा उपयोग में लाया जा रहा है। दिल्ली में अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से जैविक गैस का उत्पादन किया जाता है और रसोई में उपयोग किया जाता है।

निष्कर्ष

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण उन अपशिष्ट सामग्रियों को संकलित करता है जो आमतौर पर खाद्य संयंत्रों, उद्योगिक प्रक्रियाओं, और सार्वजनिक स्थलों से उत्पन्न होते हैं। इसमें खाद्य अपशिष्ट, कागज, फैक्ट्री अपशिष्ट, इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट आदि शामिल हो सकते हैं। इन अपशिष्टों का समय-समय पर ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो यह स्वास्थ्य, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वच्छता पर असर डाल सकते हैं।

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के प्रबंधन में कई उपाय हो सकते हैं जैसे कि सही अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया की अपनाई, अपशिष्ट को अनावश्यक न बढ़ने देना, अपशिष्ट को फिरसे उपयोग में लाना या उसे डिस्पोज करने के उचित तरीकों का अनुसरण करना। इसके अलावा, समुदायों को अपशिष्ट प्रबंधन के महत्व को समझाना भी महत्वपूर्ण है।

तो ये था ठोस अपशिष्ट प्रदूषण और प्रबंधन पर निबंध। उम्मीद है ये लेख पढ़कर आप ठोस अपशिष्ट प्रदूषण और प्रबंधन पर अच्छे से निबंध लिख पाएंगे।

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