दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry system in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध(Essay on dowry system in Hindi): दहेज की समस्या आज भारतीय समाज के सामने सबसे बड़ी समस्या है. इसके सामाजिक प्रभाव बुरे, भयावह और दुखी के रूप में अशांत और अस्पष्ट हैं. कई लड़कियों के गरीब माता-पिता इसे अभिशाप के रूप में ले रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकारों के लिए दहेज एक बड़ी समस्या बन गयी है . भारतीय सामाजिक परंपरा में अपनी स्थिति मजबूत करने वाले दहेज को आज के संदर्भ में एक अपमानजनक प्रथा माना जाता है.

तो चलिए हमारे निबंध के ओर बढ़ते हैं जो है दहेज प्रथा पर निबंध. यह लेख में आप दहेज प्रथा के बारे में विस्तार रूप से जान पाएंगे.

दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry system in Hindi  

प्रस्तावनादहेज का रूप और इतिहासविदेश में दहेजदहेज एक सामाजिक बीमारी हैदहेज फैलने का कारणसुधार की जरूरतदहेज को खत्म करने के लिए उठाए गए कदमदहेज को खत्म कैसे करेंउपसंहार

प्रस्तावना     

ईश्वर की रचना का सबसे बड़ा सामाजिक प्राणी मनुष्य है. मनुष्य समाज में दो नस्लें हैं: एक पुरुष और दूसरी नारी. और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं. प्रत्येक व्यक्ति का वैवाहिक जीवन जीने के लिए अधिकार है. वैवाहिक जीवन तभी सुखी होता है जब महिला और पुरुष स्नेह से बंधे होते हैं. दुनिया के अधिकांश देशों में, विशेषकर भारत में सार्वजनिक विवाह आम हैं. इसलिए लगभग हर किसी के जीवन में यह सामाजिक आवश्यकता है. माता-पिता विवाह की व्यवस्था तब करते हैं जब बेटा और बेटी उचित उम्र तक पहुँचते हैं. विवाह एक पवित्र सामाजिक कार्य है. यह काम हर जगह में कुछ सामाजिक रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार आयोजित किया जाता है. इन रीति-रिवाजों और परंपराओं के प्रभाव के तहत, शादी के दौरान दहेज का लेना और देना प्रचलित हो रही है. लेकिन दुख की बात है कि यह घिनौनी दहेज प्रथा भारतीय सामाजिक जीवन में एक गंभीर समस्या बन गई है.

दहेज का रूप और इतिहास

पौराणिक कथाओं और इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि यह प्रथा प्राचीन काल में प्रचलित थी. रामायण और महाभारत में दहेज देने की प्रथा के कई उदाहरण हैं. मध्य युग में राजाओं और रानियों ने अपनी बेटियों की शादी में दहेज के रूप में बहुत सारी संपत्ति देते थे. उस समय, वे दबाव में रह कर या मजबूर हो कर दहेज नहीं देते थे. जिस तरह उस समय के समाज और आज के समाज के बीच एक अंतर है, वैसे ही दहेज के बीच भी एक बड़ा अंतर है. आज के समाज दुल्हन की शैक्षिक योग्यता, रोजगार और प्रतिष्ठा को देख कर ही दहेज दिया जा रहा है.

विदेश में दहेज  

भारत में दहेज महामारी की भूमिका निभा रहा है लेकिन पश्चिमी देशों में शिक्षा के प्रसार और महिलाओं के आत्मनिर्भरता के कारण यह एक शब्दावली बन गई है. फिर भी सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और क्वेटा जैसे देशों में यह दहेज बीमारी उस देश की सरकार के लिए गहरी चिंता का विषय बन गई है.

दहेज एक सामाजिक बीमारी है

भारतीय समाज में दहेज को अब एक सामाजिक बीमारी माना जाता है. जिस तरह बीमारी शरीर के क्षय का कारण बनती है, उसी प्रकार दहेज धीरे-धीरे समाज को कमजोर और नष्ट कर रहा है. दहेज की कमी या दहेज की पसंद के कारण नवविवाहितों के जीवन में कई तूफान आते हैं. अखबारों में प्रतिदिन अनगिनत नवविवाहितों की मौत की खबरें प्रकाशित हो रही हैं. एक भी दिन ऐसा नहीं जाता, जिस दिन भारत में महिलाओं के खिलाफ दहेज संबंधी हिंसा के बारे में सुनने में नहीं मिल रही है.

आज कल की शादी एक व्यापार बनके रह गया है. लड़की की उपस्थिति, गुण और योग्यता को दहेज से कम माना जा रहा है. दहेज में दूल्हे के महत्व और व्यक्तित्व को खरीदा जा रहा है. सामूहिक रूप से, दहेज ने भारतीय सार्वजनिक जीवन में अशांति का माहौल बनाया है. वास्तव में, दहेज आर्थिक और मानसिक कष्ट के कारण है. इसलिए भारतीय समाज में दहेज को एक बीमारी या दोष कहना अनुचित नहीं है.

दहेज फैलने का कारण

दहेज फैलने के कई कारण हैं. अब भारतीय धीरे-धीरे आध्यात्मिकता, नैतिकता और त्याग से दूर जा रहे हैं. आजकल बहुत ज्यादा भारतीय एक भौतिकवादी दुनिया में प्रवेश किया है, जहां धन के मूल्य पर जोर दिया जाता है. इस दृष्टिकोण से, दहेज के दावे बढ़ रहे हैं. दहेज संक्रामक रोगों के समान है. जो लोग अपनी बेटियों के लिए दहेज देते हैं, वे अपने बेटे के लिए दहेज की मांग करते हैं. इसको मानवता की कमी कहना उचित होगा. विलासिता के सामान के लाभों को दहेज से जोड़ा गया है. विशेष रूप से सुस्त सरकारी नियमों के कारण दहेज फैलता बढ़ रहा है.

सुधार की जरूरत  

दहेज भारतीयों के लिए अभिशाप से ज्यादा कुछ नहीं है. इसे और अधिक खतरनाक होने से पहले इसे मिटाने की आवश्यकता है. हालांकि इसके उन्मूलन के लिए लगातार प्रयास किया गया है, कोई कार्रवाई नहीं की गई है. जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. देश में लोकतांत्रिक शासन की प्रतिष्ठा है; लेकिन दहेज निश्चित रूप से हमारे देश के प्रतिष्ठा पर एक धब्बा है. साहसी व्यक्तियों, सुधारकों और प्रशासकों के संयुक्त प्रयासों से इसे टाला जा सकता है. आज के समाज में, दहेज के खिलाफ बोलना एक उचित और राष्ट्रीय चुनौती है.

दहेज को खत्म करने के लिए उठाए गए कदम:

भारत दहेज से मुक्ति के लिए संघर्ष का प्रतीक रहा है: लेकिन यह न तो खत्म हुआ, न ही यह सफल हुआ. केंद्रीय और राज्य स्तर पर, दहेज उन्मूलन के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं.

समाज को सही दिशा में निर्देशित करके दहेज के मुद्दे को दूर करने के लिए ‘दहेज प्रतिषेध अधिनियम(Dowry prohibition act)’ बनाया गया है. परिणामस्वरूप कई अपराधियों का जघन्य व्यवहार सामने आया है. दहेज प्रतिषेध अधिनियम(Dowry prohibition act) 1961 में पारित किया गया था. यह कानून के तहत, दहेज स्वीकृति और दहेज प्रदान करना को एक अपराध माना जाता है. यह कानून का उल्लंघन करने पर कारावास और जुर्माना दोनों के प्रावधान हैं. समय के साथ दहेज कानून बदल गया है. कई नए कानून बनाए गए हैं.

कई मामलों में, सुप्रीम कोर्ट की कठोर सजा ने जनता का ध्यान खींचा है; लेकिन केवल कानून के माध्यम से इस जघन्य प्रथा को मिटाना संभव नहीं है.

दहेज को खत्म कैसे करें

वास्तव में, दहेज को समाप्त किया जा सकता है. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, शिक्षा का प्रसार देश भर में आवश्यक है. यदि शिक्षा प्रणाली ग्रामीण लड़कियों और लड़कों के पास अच्छे से पहुँच पायेगा, तब जाकर दहेज हटाने में क्रांतिकारी बदलाव संभव होगा. दहेज को खत्म करने के लिए उचित जन जागरूकता और जनमत तैयार करने की जरूरत है. इसके लिए जन आंदोलन की भूमिका आवश्यक है. दहेज के खिलाफ प्रचार और प्रसार की आवश्यकता है. विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों इस संबंध में बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. दहेज प्रथा दूर करने में समाचार पत्रों, रेडियो और टेलीविजन को महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहिए. दहेज उन्मूलन के लिए महिलाओं के आंदोलन और जागरूकता की बहुत आवश्यकता है.

उपसंहार

जब तक दहेज प्रथा के खिलाफ जन-जागरूकता नहीं उठाई जाएगी, तब तक यह हमारे समाज का हानि करते रहेगा. दहेज की वजह से पारिवारिक जीवन में अशांति पैदा हो रही है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने दहेज प्रथा को देख कर एक बात बोले थे, “These social customs will carry India towards poverty.” अगर आज की युवा पीढ़ी इस प्रथा के दुष्प्रभावों का एहसास करके माता-पिता को दहेज रहित शादी के लिए सलाह देंगे तब जाकर इसे हल किया जा सकता है. यह विडंबना है कि मुट्ठी भर लोग ही इस समस्या के समाधान की उम्मीद कर रहे हैं. इसके लिए जन आंदोलन की आवश्यकता है.  

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