2024 रक्षाबंधन पर निबंध – Raksha bandhan essay in Hindi

हेलो दोस्तों, में आज आपके लिए लेकर आया हूँ रक्षाबंधन पर निबंध (Raksha bandhan essay in Hindi). प्रत्येक त्यौहार हमें प्रतिवर्ष अपना दिव्य सन्देश देकर विदा हो जाता है और अपनी मधुर याद हमारे लिए छोड़ जाता है. त्यौहारों का यह क्रम युगों से चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा. इसी प्रकार रक्षा बंधन का त्यौहार हमें प्रेम व भाई-चारे का संदेश देने के लिए वर्ष में एक बार आता है. यह मानव को स्नेह के बंधन में बांधकर एक वर्ष के लिए पुनः विदा हो जाता है. उसके द्वारा स्थापित स्नेह व बंधुत्व सदा के लिए अमर हो जाता है.

तो और देरी न करते हुए चलिए हमारे आर्टिकल के और बढ़ते है जो है रक्षाबंधन पर निबंध (essay on raksha bandhan in Hindi).

रक्षाबंधन पर निबंध – Essay on Raksha bandhan in Hindi         

रक्षाबंधन हमारे देश का एक पुराना पर्व है. श्रावण महीने की पूर्णिमा दिन यह पर्व बडी धूमधाम से मनाया जाता है.

धार्मिक दृष्टी से इस त्योहार का भी महत्त्व है. किम्बदन्ती के अनुसार भगवान विष्णु ने इस दिन वामन के रूप में दानव बलि को तीन पग भूमी मांगे थे. बलि को इसलिए सारा राज्य दान करना पडा था. इस महान त्याग की स्मृति में यह त्योहार भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. इस दिन वे यजमानों के हाथ में डोरी बाँध कर आशीर्वाद देते है.

देश के कोने – कोने में रक्षाबंधन बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. सभी बच्चे, स्त्री – पुरुष नयी पोषक पहनते हैं. बहनें अपने हाथ से भाइयों को राखी बांधकर मिठाई खिलाती है. भाई भी अपनी सामर्ध्य के अनुसार धन – राशि तथा अन्यप्रकार के उपहार प्रदान करते है. इसी प्रकार आनंद और हंसी – खुशी साथ यह त्योहार संपन्न होता है. रक्षा – बंधन के पवित्र लक्ष्य को हम नहीं भूलना चाहिए.

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रक्षाबंधन पर निबंध – Raksha bandhan essay in Hindi

प्रस्तावना

पुराने समय से, भारतीय त्योहारों को वर्ष के विभिन्न समयों में मनाया जाता है. प्रत्येक पूर्णिमा एक त्योहार है. हर त्योहार की विशिष्टता अलग-अलग होती है. प्रत्येक पूर्णिमा का एक अद्वितीय नाम होता है. बुद्धपूर्णिमा, व्यासपूर्णिमा, गुरुपूर्णिमा, कुमारपूर्णिमा और दोलपूर्णिमा हिंदू लोगों के सबसे यादगार दिन हैं. इसी तरह, रक्षाबंधन एक उल्लेखनीय त्योहार है. इसे रक्षाबंधन कहा जाता है क्योंकि यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. भाईचारे का प्रतीक रक्षाबंधन. भाई और बहन का स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन है.

तात्पर्य व स्वरूप

रक्षा बंधन दो शब्द से बना है रक्षा और बंधन, जिसका अर्थ है रक्षा के लिए बंधन. जिसको रक्षा के लिए धागे की डोरी बांधी जाती है वह बांधने वाले की रक्षा के लिए सदा के लिए बंध जाता है. एहि रक्षा शब्द कालांतर में राखी के रूप में भी प्रयुक्त होने लगा है. कितना मर्यादापूर्ण है यह त्यौहार. एक छोटी-सी डोरी बांधकर वह स्नेह व बंधुत्व की डोर में बंध जाता है.

रक्षाबंधन का पौराणिक महत्व

रक्षाबंधन को लेकर पुराणों में कई रोचक और मर्मस्पर्शी कहानियां हैं. इंद्र-वृत्तासुर का युद्ध उनमें से एक है. वृत्तासुर के साथ युद्ध में इंद्र की हार के बाद, इंद्र की पत्नी शची ने अपने पति के पुन: विजय के लिए देव गुरु बृहस्पति की शरण ली. देवगुरु की सलाह पर, इंद्राणी ने अपने पति के हाथ में एक धागा बांध दिया. तब से इसे रक्षासूत्र या राखी के नाम से जाना जाता है.

महाभारत की एक और कहानी है. एक बार भगवान कृष्ण की उंगली पर एक घाव हो गया. पास में कृष्णा प्राणगता पांडव वधु द्रौपदी थी. इस घटना से परेशान होकर उन्होने अपने साड़ी के कुछ हिस्सों को फाड़ दिया और उन्हें घाव के ऊपर बांध कर उपचार किये थे. इसके बाद सर्वोच्च भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को भविष्य के खतरों से बचाने का वादा किये थे. कुरु सभा में द्रौपदी के वस्त्र हरण के समय, भगवान ने उन्हें वस्त्र देकर उनकी गरिमा की रक्षा किये थे. उस दिन भगवान कृष्ण की उंगली पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का कुछ हिस्सों फाड़कर घाव के ऊपर जो बांधी थी, वह कुछ हिस्से का कपडे भी राखी के नाम से जाना जाता है.

विष्णुभक्त दैत्यराज बलि पुर से विष्णु भगवान का किस्सा रक्षाबंधन से संबंधित है. देवी महालक्ष्मी ने ब्राह्मणी की रूप में खुद को निर्वासित कर ली अपने पति के मुक्ति के लिए. श्रावण पूर्णिमा पर राखी उत्सव बलि के पुर में मनाया जा रहा था, तब देवी लक्ष्मी ने बलि के हाथों में रक्षा बंधन करके अपनी  उद्देश्य व्यक्त किया. बलि बहुत खुश हुआ और उसने प्रभु को प्रणाम किया और अलविदा दिया. तब से, बहनों ने भाइयों के हाथ में राखी बांध कर घनिष्ठ संबंध बनाए रखा है.

इतिहास में रक्षाबंधन      

 मध्यकालीन भारत में चित्तौड़ की विधवा कर्णावती गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के साथ युद्ध में थी. उन्होंने हार के खतरे से खुद को बचाने के लिए हुमायूँ को एक राखी भेजा. उस राखी से प्रभावित होकर, हुमायूँ ने कर्णावती को अपनी बहन के रूप में स्वीकार कर लिया और उनकी सुरक्षा के लिए सेना भेजा.

अलेक्जेंडर और पुरु के बीच युद्ध के बारे में रक्षाबंधन की एक और कहानी है. अलेक्जेंडर की पत्नी ने युद्ध में अपने पति के जीत के लिए, पुरु के हाथ में राखी बांध कर भाई बहन का संपर्क स्थापन कर ली. फिर युद्ध में अलेक्जेंडर रथ के नीचे गिर गए.  पुरु अलेक्जेंडर को मारने वाला था लेकिन जब उसने राखी को उसके हाथ से बंधा देखा तो अलेक्जेंडर की हत्या करने से पीछे हट गया.

भारत में रक्षाबंधन में अंतर

रक्षाबंधन भारत के लगभग सभी हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन स्थान में अंतर है. उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत में, इसे राखी पौर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. पश्चिमी भारत, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में, इसे नारील पौर्णिमा के रूप में जाना जाता है. इस दिन, लोग विष्णु भगवान की उद्देश्य में नारियल को समुद्र में फेंक देते हैं. मछुआरे इस दिन से मछली पकड़ना शुरू करते हैं. ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में ब्राह्मण अच्छे कर्म के लिए संपादन करते हैं. इसी तरह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार में इस दिन को कजरी पौर्णिमा कहा जाता है. यहां के किसानों के लिए यह एक महत्वपूर्ण दिन है.

रक्षाबंधन पालन का उद्देश्य

रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा की कई विशेषताओं में से एक है. यह रक्षाबंधन सिर्फ भाइयों और बहनों के बीच नहीं रहता है; बल्कि, इस दिन का दृष्टिकोण दूरगामी है. एक स्वस्थ परिवार के गठन पर राखी का प्रभाव देखा गया है. महिलाओं के खिलाफ हिंसा को संबोधित करने में राखी की महत्वपूर्ण भूमिका है. नैतिकता, आध्यात्मिकता, मानवता के विकास और प्रसार में इस दिन की महत्वपूर्ण भूमिका है. रक्षाबंधन से पहले बाजारों में राखी की बिक्री ने इसके  विशेषताओं को कई गुना बढ़ा दिया है.

उपसंहार

श्रावण पूर्णिमा हमारी परंपरा में धार्मिक चेतना की स्पष्ट अभिव्यक्ति है. इस महीने की पूर्णिमा कृषि विकास में मवेशियों की देखभाल के बारे में जागरूकता बढ़ाती है. राखी वास्तव में सामाजिक एकजुटता का सुंदर सेतु है.

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