रथ यात्रा पर निबंध – Essay on rath yatra in Hindi

रथ यात्रा पर निबंध (Essay on rath yatra in Hindi): रथ यात्रा एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है. पुरी की रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है. भगवान जगन्नाथ के बारह महीनों में तेरह त्योहार मनाए जाते हैं. रथ यात्रा उन्हीं में से एक है. कहा जाता है कि राजा इंद्रद्युमन की पत्नी गुंडिचा देवी की इच्छा के अनुसार यह यात्रा शुरू हुई थी. इसलिए इसे गुंडिचा यात्रा भी कहा जाता है. तो चलिए निबंध की ओर बढ़ते हैं और रथ यात्रा के बारे में अच्छे से जानते हैं.   

रथ यात्रा पर निबंध – Essay on rath yatra in Hindi

प्रस्तावना

हिंदू धर्म में कई देवताओं की पूजा करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. इसलिए, भारत के कई हिस्सों में साल के अलग-अलग समय पर विभिन्न देवी-देवताओं के त्योहार मनाए जाते हैं. रथ यात्रा लंबे समय से एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार के रूप में प्रसिद्ध है. विश्व के स्वामी भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर सार्वजनिक के सामने से यात्रा करते हैं. जगन्नाथ पूरे विश्व और पूरी मानव जाति के पूज्य देवता हैं. यह सार्वजनिक यात्रा हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि से शुरू होती है और दशमी तिथि को समाप्त होती है.

पुरी रथ यात्रा की स्वतंत्रता

विश्व प्रसिद्ध है पुरी की रथ यात्रा. श्री क्षेत्र पुरी जगन्नाथ धाम के नाम से जाना जाता है. श्री क्षेत्र पुरी भारत के चार प्रमुख तीर्थ धामों में से एक है. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की परंपरा इसी पवित्र धाम पुरी से उत्पन्न हुई थी. भारत के साथ साथ विदेशों में भी कई जगहों पर जगन्नाथ मंदिर और उन सभी जगहों पर रीति नीति के अनुसार रथ यात्रा मनाई जाती है. लेकिन इन सभी रथ यात्राओं का मुख्य स्रोत पुरी रथ यात्रा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरी रथ यात्रा मनाने के लिए जो सब नियमों होता है वह सब नियमों को बाकि जगह पे पालन करके रथ यात्रा मनाया जाता है. इससे पुरी रथ यात्रा की विशिष्टता, विशिष्टता और महत्व का  अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसा कहा जाता है कि राजा इंद्रद्युम्न ने पुरी के मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित की थीं. वे एक सर्वोच्च वैष्णव और वैष्णव धर्म के सबसे बड़े प्रवर्तक थे. उनके शासनकाल के दौरान पुरी में रथ यात्रा परंपरा शुरू हुई थी. कई लोगों के अनुसार, यात्रा उनकी पत्नी गुंडिचा देवी के कहने पर शुरू हुई थी. इसलिए इस यात्रा का दूसरा नाम गुंडिचा यात्रा है. इस तीर्थयात्रा के दौरान जिस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा रहते हैं, उसका नाम गुंडिचा मंदिर है.

पूर्व तैयारी

हालांकि आषाढ़ के महीने में रथ यात्रा होता है, लेकिन यात्रा की तैयारी उससे बहुत पहले शुरू हो जाती है. रथ निर्माण यात्रा का प्रारंभिक हिस्सा है. माघ मास की पंचमी तिथि से रथ निर्माण के लिए लकड़ी एकत्र करने का अभियान शुरू होती है. एक बार आवश्यक मात्रा में लकड़ी एकत्र हो जाने के बाद, पवित्र अक्षय तृतीय के शुभ अवसर पर पारंपरिक तरीके से भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए तीन विशेष रथ बनाए जाते हैं.

तीन रथों का वर्णन

रथयात्रा के अवसर पर बने तीन रथों के नाम और उनके आकार और प्रकार में भिन्न होते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है. यह रथ 23 हाथ ऊँचा है और इसमें 16 पहिए हैं. नंदीघोष रथ के सारथी का नाम मताली है. इसी प्रकार भगवान बलभद्र के रथ को तलध्वज कहा जाता है और इसकी ऊंचाई 22 हाथ है. इसमें चौदह पहिए लगे होते हैं. इस रथ के सारथी सुद्युम्न के नाम से परिचित है. देवी सुभद्रा दर्पदलन नामक रथ पर विराजमान होती हैं. उनका रथ २१ हाथ ऊँचा और उसमें बारह पहिये हैं. अर्जुन इस रथ के सारथी के रूप में मौजूद होते हैं. प्रत्येक रथ को विभिन्न रंगों के वस्त्रों से सजाया जाता है. प्रत्येक रथ के शीर्ष पर एक झंडा होता है.

यात्रा विवरण

रथयात्रा के दिन प्रातःकाल से ही सेवक अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार हो जाते हैं. उस दिन श्री मंदिर में मंगल आरती, सूर्य पूजा और इस तरह के आयोजनों को समय पर पूरा करने के बाद रथ स्थापना और मंगलार्पण समाप्त होता है. बाद में, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा पारंपरिक रूप से रत्न सिंहासन से रथ तक यात्रा करते हैं. इस यात्रा को ‘पहंडी बीजे’ कहते हैं. पहंडी समय का नजारा बहुत ही प्रभावशाली होता है. पहले भगवान सुदर्शन देवी सुभद्रा के रथ पर चढ़ते हैं और फिर बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ अपने-अपने रथों पर बैठते हैं. श्री जगन्नाथ के सबसे पहले और सबसे प्रमुख सेवक गजपति महाराज तीनों रथ में अपनी सेवा पूरी करते हैं. इसके बाद श्रद्धालुओं द्वारा रथ यात्रा की शुरुआत की जाती है.

रथ से जुड़ी मजबूत रस्सियां ​​मौजूद भक्तों द्वारा खींची जाती हैं. गुंडिचा मंदिर की ओर रथ लाया जाता है. पहले प्रभु बलभद्र, फिर देवी सुभद्रा और अंत में प्रभु जगन्नाथ के रथ को खींची जाती है. गुंडिचा मंदिर पहुंचने पर, सभी भगवानों को मंदिर के अंदर ले जाया जाता है. श्री मंदिर की तरह, गुंडिचा मंदिर में भी भगवानों के भी अलग-अलग नीति होते हैं. प्रभु बलभद्र, देवी सुभद्रा और प्रभु जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर में सात दिन बिताते हैं.

इस गुंडिचा मंदिर में दसवीं तक सभी भगवान निवास करते हैं. दशमी के दिन फिर से सभी भगवान रथ पर जाते हैं. और सभी भक्त रथों को खींचकर मंदिर तक ले जाते हैं. भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के इस श्री मंदिर की वापसी को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है. एकादशी के दिन, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ और सभी देवता रथ पर सोने से सुशोभित होते हैं. इसके बाद सभी भगवान को मंदिर में ले जाया जाता है और रथ यात्रा समाप्त होता है.

उपसंहार  

आज भगवान जगन्नाथ धर्म और संस्कृति पूरी दुनिया में फैली हुई है. जगन्नाथ धाम दुनिया भर में एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. लेकिन इस धर्म और संस्कृति का मूल श्री क्षेत्र पुरी है. यहां रथयात्रा एक सार्वजनिक उत्सव है. दुनिया भर के लोग, जाति, धर्म या रंग की परवाह किए बिना, इस यात्रा में स्वतंत्र रूप से भाग ले सकते हैं. सभी को रथयात्रा कम से कम एक बार अवश्य देखनी चाहिए.

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ये था रथ यात्रा पर निबंध (Essay on ratha yatra par nibandh). उम्मीद है यह निबंध आपको पसंद आया होगा. अगर पसंद आया है, तो यह निबंध को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें. मिलते है अगले लेख में. धन्यवाद.

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